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१५ शब्दादि तीन नय
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२. तीनो का विषय
एकत्व
नय) द्रव्य निक्षेप को स्वीकार नही करता ।" (अभिप्राय यह है कि वर्तमान भाव मात्र ग्राहक, भावनिक्षेप का विषय होने पर से इसको पर्यायार्थिक ही कहा जा सकता है द्रव्याथिक नही ) ।
तात्पर्य यह है कि तीनों शब्द नयों का व्यापार शब्दों के दोषों को देखना है, द्रव्य के भेद प्रभेदो को नही । 'अमुक शब्द का क्या अर्थ होना चाहिये, यदि ऐसा अर्थ किया तो यह दोष आयेगा, यदि ऐसा किया तो यह दोष आयेगा, इस प्रकार शब्द को सूक्ष्म, सूक्ष्मतर सूक्ष्मतम दृष्टि से देखना इनका काम है, अत इन्हे शब्द नय कहा जाता है । तीनो शब्द नयों में 'शब्द नय' नाम की एक स्वतंत्र नय है अत भ्रम निवारणार्थ तीनों के समूह को बताने के लिये 'व्यञ्जन नय' यह नाम लिया जाता है नयों का पर्यायथकपना व व्यञ्जनपना सिद्ध है ।
। इस प्रकार इन
२. तीनो का
पर्यायार्थिक सिद्ध हो जाने पर यह कहने की आवश्यकता नही रहती कि इनका विषय भी ऋजुसूत्र वत् एकत्व ग्राहक है । व्यञ्जन नयो का मुख्य व्यापार किसी
विषय
एकत्व
पदार्थ को नाम देना है | नाम वस्तु की कोई न कोई विशेषता देख कर ही रखा जाया करता है, और विशेषता एकत्व स्वरूप होती है । विशेषता भी दो प्रकार की है - सूक्ष्म व स्थूल । तहा सूक्ष्म का तो कोई भी वाचक शब्द ही सम्भव नही है, जो भी शब्द है वे सब स्थूल विशेषता अर्थात व्यञ्जन पर्याय को लक्ष्य में रखकर प्रगट हुए है, जैसे सत् के अस्तित्व गुण के कारण उसे 'सत्' द्रव्यत्व गुण के कारण 'द्रव्य' और वस्तुत्व गुण के कारण 'वस्तु' कहने मे आता है । अत वस्तु के विशेष को दृष्टि में रखकर उसे अपने द्वारा वाच्य बनाने वाले सर्व शब्दो का विषय भो सूक्ष्म तर्कणा के द्वारा एकत्वगत ही प्राप्त होगा । यहा भी पूर्वापर पर्यायो