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१४....ऋजु-सूत्र नय ... ३८० .. ५. ऋजु सूत्र नय
__ सम्बन्धी शकायें या-पर्याय है। इसको सामान्यभेदक और विशेषभेदक के भेद “से दो भेद है । द्रव्य और पर्याय के एकान्त भेद को : 'मानना व्यवहाराभास' है इसमें चावकि दर्शन गर्भित है। . . . वस्तु की अतीत और अनागत पर्याय को छोड़कर वर्तमान क्षण की पर्याय को जानना ऋजुसूत्र नय है, जैसे इस समय मै सुखी हू या सुख की पर्याय भोग रहा हूं या इस समय मै युवा हू । सूक्ष्म ऋजुसूत्र और 'स्थूल ऋजुसूत्र के भेद से ऋजुसूत्र के दो भेद है । केवल क्षण क्षण में नाश होने वाली पर्याय को मानकर पर्याय के अश्रित द्रव्य का सर्वथा निषेध करना ऋजुसूत्र नया. भास है । बौद्ध दर्शन इसी मे गर्भित है । "'. इस प्रकार सर्वत्र जानना । वचनो के भाव सम
झने का प्रयत्न करना । जहा कही भी निरपेक्षता दिखाई
दे वहां गौप्यता का अर्थ समझना, क्योकि पहिले ही । अध्याय न०.९ मे नयो- की मुख्य गौण व्यवस्था का
- परिचय दिया जा चुका है। .. . . ' ६. शंका -ऋजुसूत्र नय. केवल वर्तमान काल को विषय करता ..हैं, तव भूत व भावि सज्ञा .. व्यवहार. किस नय का
विषय है।. ... .. .. . . . . उत्तरः-भूत व भावि संज्ञा का व्यवहार करने में कोई विरोध
''नहीं है । अन्तर केवल इतना पड़ता है कि यदि वह व्यवहार ऐसा किया गया हो, जिसमें कि भूत या भविष्यत पर्याय का कोई सम्बन्ध वर्तमान पर्याय के साथ दिखाई -दे तो वह प्रयोग -द्रव्याथिक अर्थात 'नगम' या व्यवहार नय का कहलायेगा; जैसे कि जिसे कल मन्दिर मे देखा