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१४ ऋजु सूत्र नय
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इस प्रकार जन्म से मरण पर्यन्त स्थायी निरवयव स्वसंस्थान तथा स्वलक्षणभूत एक स्वभाव स्वरूप कोई सामान्य रहित विशेष जड़ या चेतन व्यक्ति ही स्वतंत्र रूपेण सत् है । यह उक्त लक्षणों का सार है । अव इन सर्व लक्षणों की पुष्टि व विशदता के अर्थ कुछ आगमोक्त वाक्य उद्धृत करता हूं ।
१ लक्षण नं० १ (व्युत्पत्ति):
१ स. सि । १।३३।५११ " ऋजु प्रगुणं सूत्रयति तन्त्रयतेति ऋजुसूत्र.।”
२. ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण
अर्थ - सीधे और सरल विषय को सूत्रित करता है, स्वीकार करता है, ऐसा ऋजुसूत्र नय है ।
( रा. व | १|३३|७|६६)
२
आप 1981 प्. १२५ “ऋजु प्राजल सूत्रयतीति ऋजुसूत्रः ।”
अर्थ --जो सरलता पूर्वक पदार्थों को ग्रहण करे सो ऋजुसूत्र है ।
३. ध ।१।पृ ८६|४ “ऋजु प्रगुण सूत्रयति सूच्यतीति तत्सिद्धेः ।"
अथे - सीधे व सरल विपय को सूत्रित व सूचित करता है, ऐसा ऋजुसूत्र नय है ।
( क. पा. ११ ६ १८५२३३।३)
२. लक्षण नं २ ( सामान्य रहित विशेष ग्राहक ) .
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१ श्लो.
वा ।१।२।१६।१५ " सामान्य द्रव्य से रहित कोरा विशेष भी ऋजुसूत्र से कल्पित किया जाता है ।"