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१३ सग्रह व व्यवहार नय
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५. व्यवहार नय विशेष.
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अर्थ-विशेष या अशुद्ध सग्रह भेदक व्यवहार नय को ऐसा ___ जानो जैसे जीवको ससारी व मुक्त ऐसे दो प्रकार का
कहना।
३ नय चक्र गद्य । पृ०१४ "विशषसग्रहस्यार्थों जीवादीरूपभेदत ।
भिनत्ति व्यवहारस्त्वश द्धसग्रहभेदक ।२।" (अर्थ-जीव अजीव आदि भेद रूप जो विशेष संग्रह नय का
विषय है, उसे जो विभाजित करता है वह अशुद्ध सग्रह भेदक व्यवहार नय है।
क्योकि अशुद्ध सग्रह की विषयभूत अवान्तर सत्ताओं में भेद डालता है इसलिये ''अश द्धसंग्रह भेदक या अश द्धार्थ भेदक व्यवहार "ऐसा इसका नाम सार्थक है। यह तो इस नय का कारण है । और विश्व की चित्रंता विचित्रता को दर्शाना इसका प्रयोजन है।
____ यद्यपि सग्रह व व्यवहार नयों मे द्वैताद्वैत का ग्रहण द्रव्यमुखेन ही करने में आया है, परन्तु क्षेत्र, काल व भाव पर भी समान रूप से इसे लागू किया जा सकता है। जैसे कि द्रव्य या सत् सामान्य को जीव अजीव व मनुष्य तिर्यञ्च आदि भेद करते हुए परमाणु पर्यन्त भेद करना द्रव्यगत द्वैताद्वैत है । अनन्त प्रदेशों से असंख्यात व संख्यात आदि विकल्पों रूप भेद करते हुए एक प्रदेश पर्यन्त भेद करना क्षेत्र गत द्वैताद्वैत है। अनाद्यनन्त काल से लेकर यग, कल्प, वर्ष, मास, व दिन आदि प्रमाण स्थिति वाली पर्यायों रूप से भेद करते हुए एक समय प्रमाण स्थिति वाली पर्याय पर्यन्त भेद करना कालगत द्वैताद्वैत है। किसी भी एक गुण के अनन्त गुणांश या अविभागप्रतिच्छेदी से लेकर असंख्यात संख्यात आदि रूप से भेद करते हुए एक गुणाश पर्यन्त भेद करना भावगत द्वैताद्वैत है । यह चारों ही प्रकार के द्वैतादेत इन द्रव्याथिक नयों के विषय है ।