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जगह व
वहार नय
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२
सामान्य
१३ सग्रह व व्यवहार नय ३१५ -२ सग्रह नय सामान्य १. वृ. न. च. २०६ "अपर परम विरोधे सर्वमस्तीति शुध्द
सग्रहेण ।" .
अर्थ -शुध्द व अशुध्द का अविरोध हो जाने पर सर्व
अस्ति रूप है, ऐसा शुध्द सग्रह के द्वारा ग्रहण होता है। .
२. नय चक्र गद्य पृ.१४ “यदन्योन्याविरोधेन सर्व सर्वस्य वक्तिय ।
सामान्य संग्रह प्रोक्तश्चैकनजाति विशेषक ॥" अर्थ-एक दूसरे में विरोध किये बिना जो सबको सबका
कहता है अर्थात सबको मिलाकर एक अद्वैत महा सत्ता में गर्भित कर देता है, वह सामान्या या शुध्द संग्रह है। और एक जाति में रहने वाले सर्व व्यक्तियो को एक रूप से कहने वाला विशेष या अशुध्द सग्रह है।
३. आ. प. ।। पृ.७७ "सामान्य. सग्रहो यथा-सर्वाणि द्रव्याणि - . परस्परमविरोधानि ।" .
अर्थ --सामान्य संग्रह तो ऐसा है जैसे कि “सर्व द्रव्य परस्पर
मे अविरोधी है" ऐसा कहना । सत् सामान्य मे सब . समा जाते है--जड़ हो या चेतन ।
४. स. म. ।२८।३१७१७ “ (श्री देवसूरिना) अविशेष विशेषेषु __- औदासीन्यं भजमान शुद्ध द्रव्यं सन्मात्रमभिमन्यमान पर
सग्रह । विश्वमेक सद विशेषादिति यथा।"
अर्थ :-श्री देव सेन सूरि के मतानुसार सामान्य ब. विशेषो में . उदासीनता को भजने वाला अर्थात् सामान्य जाति व