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________________ १२ नैगम नय ३०२ ७. नंगम नय के भेदो का समन्वय व व्यञ्जन तथा इनके भी शुद्ध व अशुद्ध भेदो द्वारा इस अर्थ की सिद्धि की गई । द्रव्य का इन सर्व पर्यायो से अद्वैत दर्शाने के पर्याय नैगम व उसके शुद्ध व अशुद्ध भेदो का जन्म हुआ । लिये द्रव्य और इस प्रकार वस्तु मे अनेक प्रकार से धर्मो की अपेक्षा, धर्मियो की अपेक्षा, धर्म व धर्मी दोनो की अपेक्षा, तथा भूत वर्तमान व भावि कालो की अपेक्षा द्वैत उत्पन्न करके उस एक अखण्ड वस्तु को समझाने का प्रयत्न किया गया । आगे आने वाले संग्रह व व्यवहार नयो द्वारा इसी अखण्ड वस्तु का विश्लेषण करके इसकी कुछ विशेषताओ का परिचय दिया जायेगा, ताकि यह पता चल जाय कि तोनो कालो मे स्थित रहने वाली वह वस्तु अपने रूप बदलती हुई किस प्रकार चित्र विचित्र दिखाई दिया करती है । d इतना ही नही बल्कि ज्ञान की अचिन्त्य महिमा का प्रदर्शन करने के लिये सकल्प मात्र की शक्ति का परिचय भी इस ज्ञान नय मे दिया गया है । ज्ञान के द्वारा वस्तु का सकल्प करने के लिये यह आवश्यक नही कि वह सकल्प ग्राह्य वस्तु सत् स्वरूप व प्रमाणभूत ही हो । ज्ञान मे तो अनेको व्यर्थं अप्रमाणभूत बाते भी नित्य उदय हो होकर विलीन हुआ करती है, जिनकी सत्ता यद्यपि बाह्य जगत की अपेक्षा असत् है, परन्तु अन्तरग के ज्ञानात्मक जगत की अपेक्षा वह सत् है । इस सत् को ग्रहण करना नैगम नय का ही कार्य है, क्योंकि यह ज्ञान नय है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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