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१२. नैगम नय
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७. नैगम नय के भेदो
का समन्वय
सर्व परिचित है पर पर्याय के सत् का स्वीकार जरा कठिन पड़ता है, इसलिये उसका प्रमुखत. परिचय देना योग्य ही है । तहां भी त्रिकाली सत् कारण है और क्षणिक सत् कार्य, इसलिये द्रव्य के अस्तित्व को ही विशेषण बनाया जा सकता है । क्षणिक अस्तित्व स्वय असिद्ध होने के कारण विशेषण बनाया जाने योग्य नही है ।
३. शंका - सूक्ष्म होने के कारण भले ही शुद्ध अर्थ पर्याय छद्मस्थ ज्ञान गम्य न हो पर क्षायिक भाव रूप केवल ज्ञानादि शुद्ध व्यञ्जन पर्याये तो किन्ही ज्ञानी जनो के अनुमान का विषय है ।
उत्तर - यह बात ठीक है, अतः क्षायिक भावो का ग्रहण करने पर शुद्ध व्यञ्जन पर्याय को शुद्ध द्रव्य पर्याय का लक्षण बनाया जा सकता है । इसमे कोई विरोध नही । पर यहा विस्तार भय से उसका पृथक ग्रहण नही किया है । अशुद्ध पर्याय पर से अशुद्ध द्रव्य का सकल्प कराने वाले अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम नय की भांति ही यहा भी समझ लेना । या यो कहिये कि इन दोनो मे लक्षण के प्रति कोई विशेषता न होने के कारण उसका पृथक ग्रहण नही किया है ।
४. शंका - अशुद्ध द्रव्य पर्याय नैगम के कथन मे भी पर्याय पर से ही द्रव्य का संकल्प क्यो कराया गया, द्रव्य पर से भी पर्याय का संकल्प क्यों न कराया गया ?
उत्तर
द्रव्य अनुभब का विषय नही, पर्याय ही है शुद्ध हो कि अशुद्ध । अतः पर्याय पर से ही शुद्ध या अशुद्ध द्रव्यों के स्वभाव का निर्णय किया जा सकता है । पर्यायों के