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१२. नेगम नय
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६. द्रव्य पर्याय नैगम नय
अपना सत् सामान्य अभिप्रेत है, जिसमें अशुद्धता या भेद की कल्पना ही होनी असम्भव है। क्योकि सत् तो अस्तित्व मात्र का नाम है । द्रव्य व गुण का त्रिकाली सत्व भी निविकल्प है और पर्याय का क्षण स्थायी सत् भी उतने समय के लिये निर्विकल्प है। यहा द्रव्य के सत् को द्रव्याथिक दृष्टि से देखिये और पर्याय के सत् को पर्यायाथिक दृष्टि से । द्रव्याथिक दृष्टि मे जिस प्रकार एकत्व होने के कारण वह निर्विकल्प शुद्ध है, उसी प्रकार पर्यायाथिक दृष्टि में भी एकत्व रूप होने के कारण वह निर्विकल्प शुद्ध है।
द्रव्यार्थिक सत् और पर्यायाथिक सत् इन दोनों में भी पहिला तो कारण रूप है और दूसरा कार्य रूप, क्योकि सर्वत्र पर्याय का उपादान कारण द्रव्य ही होता है द्रव्य का उपादान कारण पर्याय नही । कारण पर से ही कार्य का परिचय दिया जा सकता है, इसलिये शुद्ध द्रव्य व शुद्ध पर्याय के इस प्रकरण मे द्रव्याथिक नय के विषय भूत सत् को सर्वत्र विशेषण और पर्यायाथिक के विषय भूत सत् को सर्वत्र विशेष्य बनाया गया है । इस प्रकार द्रव्य सत् रूप विशेषण को गौण करके उस पर से पर्याय सत् विशेष्य का मुख्य रूपेण सकल्प करना शुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम विषय है ।
उदाहरणार्थ "वर्तमान का यह क्षण वर्ती ज्ञान, ज्ञान ही तो है" ऐसा कहने में 'ज्ञान का अस्तित्व' तो शुद्ध : द्रव्याथिक का विषय है
और 'वर्तमान ज्ञान का क्षणिक अस्तित्व' शुद्ध पर्यायाथिक का विषय है । उपयोग का यह क्षणिक अस्तित्व ज्ञान के अस्तित्व से ही है । इस प्रकार ज्ञान गुण के सत् पर से उपयोग रूप अर्थ पर्याय के सत् का सकल्प करना, शुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम नय का लक्षण है । इसी की पुष्टि व अभ्यासार्थ निम्न उद्धरण है ।
१. श्लो. वा. पु४। पृ ४१ "संसारियों में भी शुद्ध सुख का सकल्प
करना (शुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम नय है। यहा