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________________ १२. नैगम नय २८३ ६. द्रव्य पर्याय नैगम नय इस नय का विषय है । यह तो इसके लक्षण व उदाहरण है । अब इसकी पुष्टि व अभ्यास के लिये कुछ आगमोक्त वाक्य उद्धृत करता हूं। १. श्लो. वा.पु. ४१पृ. ३५ "सुख और जीवत्व से जीव को दर्शाने ___ का संकल्प (अर्थ व्यञ्जन पर्याय नैगम नय है) २ रा वा.हि. 1१।३३।१६६ "धर्मात्मा जीव मे सुखजीवी पना है (ताकू यह नैगम नय सकल्प करै है) यहा सुख तो अर्थ पर्याय है सो विशेषण है (तातै गौण भया।) बहुरि जीवीपना (व्यञ्जन पर्याय है सो) विशेप्य है तातं मुख्य है । यह अर्थ व्यञ्जन पर्याय नैगम नय है।" सुख रूप अर्थ पर्याय पर से जीवीपना रूप व्यञ्जन पर्याय की विशेषता का परिचय देने के कारण, तो यह अर्थ व्यञ्जन पर्याय नय है और ज्ञान के ही आकारो मे सकल्प द्वारा द्वैत मे अद्वैतता करने के कारण नैगम है । इसलिये इसका 'अर्थव्यञ्जनपर्याय नैगम नय" ऐसा नाम सार्थक है । यह इस नय का कारण है । अर्थ पर्याय विशेप के अनुभव के आधार पर व्यञ्जन पर्याय विशेष की सुन्दरता व असुन्दरता आदि रूप विशेषता का परिचय देना इसका प्रयोजन है। अब नैगम नय के उत्तर भेदो मे से तीसरा जो धर्मी व धर्म ६. द्रव्य पर्याय मे एकता के सकल्प करने रूप विकल्प है, उसका नैगम नय कथन चलेगा । धर्मी के स्वभाव का परिचय देने वाला द्रव्य नैगम है और धर्म के स्वभाव का परिचय देने वाला पर्याय नैगम है। अत धर्मी व धर्म का परस्पर सम्मेल करके दिखाने वाले नय का नाम द्रव्य पर्याय नैगम ही होना चाहिये । ____दोनो नयो के भेदों को परस्पर मिला देने से इस नय के चार भेद हो जातं है- १. शुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम, २ शुद्ध द्रव्य
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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