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१२. नैगम नय
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५ पर्याय नैगम नय २ रा. वा हि । १ । ३३ । १९८ “पुरुप विप चेतन्य है सो सत् है । (ताकू यह नैगम नय सकल्प करै है) । यहा सत् नाम व्यञ्जन पर्याय है, सो विशेषण है, (ताते गौण भया) और चैतन्य नामा व्यञ्जन पर्याय है सो विशेष्य है तातै मुख्य है । यहू व्यञ्जन पर्याय नैगम है। ___ 'सत्' की व्यञ्जन पर्याय अस्तित्व रूप स्थायी सत् है और
चैतन्य की व्यञ्जन पर्यायचैतन्य का स्थायी अस्तित्व है । एक व्यञ्जन पर्याय पर से दूसरी व्यञ्जन पर्याय का सकल्प करने के कारण व्यञ्जन पर्याय नय है । दोनो के द्वैत का परस्पर मे अद्वैत करने के कारण नैगम है अथवा इस सर्व द्वैताद्वैत रूप ग्रहण का आधार मात्र ज्ञान है, वस्तु नही । उसी मे सकल्प मात्र द्वारा यह सब व्यापार किया जा रहा है । इसलिये 'व्यञ्जन पर्याय नैगम नय' ऐसा इसका नाम सार्थक है । यह इसका कारण है । द्रव्य के सामान्य अस्तित्व पर से गुण विशेपो के अस्तित्व का परिचय देना इसका प्रयोजन है। ४. अर्थ व्यबजन पर्याय नैगम नय -
इसका नाम ही स्वय अपना प्रतिपादन कर रहा है। पूर्व कथित अर्थ व व्यञ्जन पर्याय का उभय रूप ही अर्थ व्यञ्जन पर्याय है किसी अर्थ पर्यायविशेष पर से उसके साथ वर्तने वाली किसी अन्य व्यञ्जन पर्याय का सकल्प करना अर्थ व्यञ्जन पर्याय नैगम नय है।
जैसे 'धर्मात्मा का जीवन सुखी व शान्त होता है' ऐसा कहने पर सुख व शान्ति ही उस जीवन की विशेषता है, ऐसा प्रतीति में आता है। तहा सुख व शान्ति तो क्षणिक होने के कारण अर्थ पर्याय है और 'जीवन' स्थायी अस्तित्व मात्र होने के कारण व्यञ्जन पर्याय है । अर्थ पोय यहाँ विशेषण है और व्यञ्जन पर्याय विशेष्य । इस प्रकार अर्थ पर्याय पर से व्यञ्जन पर्याय की विशेषता का परिचय देना