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११ शास्त्रीय नय सामान्य २३० ५. सात नयो मे उत्तरोत्तर
सूक्ष्मता ६. समभिरूढ नय का वचन इस प्रकार है-जब मनुष्य नारक कर्म का बन्धक होकर नारक कर्म से सयुक्त हो जाये तभी वह नारकी कहा जाये ।५।
७. जब वही मनुष्य नरक गति को पहुचकर नरक के
दुःख अनुभव करने लगता है, तभी वह नारकी है, ऐसा एवभूत नय कहता है ।