________________
१. ज्ञान अथ व शब्द नय
११ शास्त्रीय नय सामान्य
२१४
समझाने व समझाने के लिये कुछ भी पूछा या कहा जायगा तब केवल
जायेगी अन्य नयो की नही । कथन यद्यपि शब्दो द्वारा मे उनका प्रयोग भी शब्दो पर से यह नही समझना चाहिये । शब्द भी तीन प्रकार क
व शब्द वाचक
शब्द नय की बात ही कही गई समझी आगे आने वाली सभी नयो का किया जायगा और आगम द्वारा किया जायगा पर इस कि सब कथन शब्द नय रुप है उपलब्ध है, ज्ञान वाचक अर्थ वाचक जैसे 'विकल्प' शब्द ज्ञान वाचक है, जीव शब्द अर्थ वाचक है, स्वर व व्यजन शब्द शब्द वाचक है जिस प्रकार की वस्तु को वाच्य बनाना होता है उसी प्रकार के शब्द का प्रयोग वक्तव्य में किया जाता है । तहा 'यह शब्द द्वारा कहा जा रहा है इस लिये शब्द नय है, इस प्रकार निर्णय करना योग्य नही । बल्कि इस शब्द द्वारा अमुक विषय को वाच्य बनाया जा रहा है इस प्रकार निर्णय करना योग्य है । अत नय तीन ही है- ज्ञान नय, अर्थ नय व शब्द नय
इन तीनो नयों के विषय के सम्बन्ध मे भी यहा विशेष प्रकार से विचार कर लेना चाहिये । ज्ञान, अर्थ व शब्द इन तीनों मे ज्ञान सब से बड़ी वस्तु है, अर्थ उससे छोटी वस्तु है और शब्द सबसे छोटी है । सो कैसे वही बताता हू । ज्ञान सत् व असत् सब प्रकार के अर्थ को जानने के लिये समर्थ है । सत्ता भूत पदार्थों को तो ज्ञान जानता ही है परन्तु कल्पना के आधार पर गधे का सीग, आकाश पुष्प, हौआ, अट्ट, विट्ट आदि बेसर पैर की बातो को जानने के लिये उसे कौन रोक सकता है ? अत ज्ञान मे अर्थ व शब्द जन्य प्रतिभास भी होता है और कल्पना जन्य प्रतिमास भी । कल्पना जन्य प्रतिमास नियम से ज्ञान विपयक ही होता है, अर्थ व शब्द विषयक नही । और उस कल्पना जन्य प्रतिभास का विषय अर्थ है, व शब्द दोनो से अधिक है, क्योकि अर्थ व शब्द तो सीमित है और वह असीम । इसलिये ज्ञान सब से बडी वस्तु है । अर्थ व शब्द मे से अर्थ, बड़ा है और शब्द छोटा क्योकि द्रव्य