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ह नय की स्थापना
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५ प्रत्येक शब्द एक
__ नय है उन्होने पहिले से सीख रखे है, और इसी लिये वक्ता के वे शब्द सुन कर भी वह उसके आशय को नहीं समझ पाते, और कदाचित उलटा ही समझ बैठते हैं । उस समय श्रोता का कर्त्तव्य उस शब्द का वह अर्थ जानने का है, जिस अर्थ मे कि वक्ता उसे उस समय प्रयोग कर रहा है, तभी वह शब्द नय कहला सकता है । और इस प्रकार जितने शब्द है उतनी ही नय है । जितने शब्द पैदा किये जायेगे वह सब नय है । 'हरा' 'पीला' 'सुख' 'दु ख' वह सब शब्द 'नय' है। क्योंकि 'हरा' यह शब्द सुनकर आप वक्ता की दृष्टि को तुरन्त पहिचान जाते है, कि इस समय ये नेत्र इन्द्रिय के किसी उस भाव के प्रति संकेत कर रहा है जो कि पहिले मैने कच्चे आम में देखा था, और जो मेरी धारणा में बैठा हुआ है।
___ इसी प्रकार शब्द कोष मे जितनी भी संज्ञाये, सर्व नाम व विशेषण है वे सब नयों के नाम है, यह समझना । मै कहता हूं "वह आदमी आज देहली गया है" । बस इस वाक्य मे मैने चार सज्ञा व सर्व नाम का प्रयोग किया । बस यही चार नय हो गई। 'वह' शब्द 'जो उस रोज देखा था' इस प्रकार की वक्ता की दृष्टि का प्रतिनिधित्व कर रहा है, इसलिये इसको 'वह' नाम की नय कह लीजिये । 'आदमी” शब्द दो हाथ दो पैरो वाले इस पुतले की ओर सकेत कर रहा है, इस भाव को दर्शा रहा है, इस लिये इसे 'आदमी' नाम की नय कह लीजिये । 'देहली' शब्द उस सत्ता भूत बडे नगर की ओर सकेत कर रहा है, जो आपके हृदय पर चित्रित है, इस लिये इसे 'देहली' नाम की नय कह लीजिये । और इसी प्रकार सर्वत्र लागू करते हुये प्रत्येक वह शब्द जो श्रोता को सकेत द्वारा वस्तु के निकट ले जाने में सफल हो जाये, नय कहलाता है । यही लक्षण पहिले किया भी गया है। श्रोता न समझ पाये तो उस शब्द को नय नही कहेगे यह बात कुछ हास्यप्रद सी प्रतीत होती है, तथा व्यवहार में लाई जाने योग्य भी नही है, इसलिये संग्रह करण द्वारा कुछ दृष्टि विशेषो का परिचय पा लेना ही पर्याप्त है।