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८ सप्त भगी
१६० ८. सातो भगो के लक्षण खाता निष्फलता के कारण निराश हुआ उस सर्व व्याख्या को कपोल कल्पना मान बैठता है जब तक यथार्थ रीतयः सातवी 'अस्ति-नास्ति अवक्तव्य' रूप त्रिसयोगी श्रेणी मे प्रवेश नहीं पाता तब तक आनिष्णात ही रहता है और इस प्रकार अपने तथा वक्ता के परिश्रम को निष्फल करता है।
परन्तु सात भगो से भली भाति परिचित हो जाने के पश्चात् अल्प तथा अधूरी अवस्था मे, इनमे से किसी भी श्रेणी के विचार के प्रति सदा सावधान रहता हुआ, धैर्य पूर्वक सप्तम श्रेणी को प्रान्त करके ही चैन लेता है।
अस्ति नास्ति भग बताते हुए यह वात दर्जा दी गई, है कि वस्तु ७. सातो भगो अनेको विरोधी धर्मो की पिण्ड है। इस अनेकान्त
के लक्षण वस्तु मे जहा अभेद बैठा है वहा ही भेद भी बैठा है । द्रव्य की अपेक्षा या सामान्य की अपेक्षा अभेद है और गुण व पर्यायो की अपेक्षा या विशेष की अपेक्षा भेद है । जहा एकत्व बैठा है वहां अनेकत्व भी बैठा है । सामान्य रूप से एकत्व है और पर्यायो की अपेक्षा अर्थात् विशेष रूप से अनेकत्व है जैसे एक ही जीव मनुष्य व पशु आदि अनेक रूप होता हुआ पाया जाता है । जहाँ नित्य बैठा है वहा अनित्य भी बैठा है । सामान्य रूप से नित्य है और विशेष रूप से अनित्य है । और इसी प्रकार काल नियमित व अकाल नियमित, कर्मधारा रूप व ज्ञान धारा रूप, नियत व अनियत ईश्वर व अनीश्वर स्वतत्र व परतत्र इत्यादि अनेको दृष्टियो के आधार पर अपनी बुद्धि से वस्तु मे एक ही समय मे अनेको विरोधी युगल पढे जा सकते है। .इस प्रकार एक वस्तु मे वस्तु पने को निपजाने वाली परस्पर विरुद्ध शक्ति युगलो को प्रकाशित करने वाला अनेकान्त है ।
साधारणत. सुनने पर यद्यपि इन युगलो मे विरोध दिखाई देता है परन्तु भिन्न भिन्न दृष्टियो या नयो से देखने पर यह सब वस्तु मे