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________________ - ७ आत्मा व उसके अग १४७ १२. पारिणामिकादि भावो का समन्वय का आकार औदयिक है और अन्तरग शाति का रूप क्षायिक । न० २७ मे सिद्ध के रूप वाला फोटो सर्वथा क्षायिक भाव का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इस प्रकार हम ने देखा कि परिणामिक भाव रूप प्रकाश सामान्य तो सर्व फोटुओ मे स्थिर रहा, बदला नही, परन्तु औदयिकादि भाव बदल गये है । पारिणामिक भाव सारी की सारी लम्बी फिल्म मे है । पर औदयिकादि कोई एक भाव सारी फिल्म मे नही है। जहां औदयिक है वहां क्षायिक नही, जहां क्षायिक है वहा औदयिकादि नही। अतः यह औदयिकादि भाव तो पर्याय रूप है और उत्पन्न ध्वसी है, इसीसे इन को क्षायिक कहा जा रहा है। पर पारिणामिक भाव त्रिकाली है, उत्पन्न ध्वसी नही है। इस प्रकार एक ही पदार्थ की फिल्म में एक ही समय यह चारो अर्थात् पारिणामिक, औदयिक, क्षायोपशमिक व क्षायिक भाव पढ़े जा सकते है. पर वस्तु मे पाये नहीं जा सकते है, क्योंकि वहा सब पर्याय एक साथ नही रहती । २ प्रश्न - चार भावो का तो कथन किया पर औपशमिक भाव का नही किया ? उत्तर.- औपशमिक भाव को जान बूझ कर छोड़ दिया है । इसके कई कारण है । पहिला कारण तो यह है कि यह भाव बहत थोडे समय तक टिकता है इसलिये इसका दृष्टात दिया जाना बहत कठिन पड़ता है। दूसरा कारण यह है कि नय प्रकरण मे इसकी मुख्यता नही है । आगम मे कही भी इस भाव पर नय लागू करके नही दिखाई गई है । तीसरा कारण यह है कि यह अपने थोड़े मात्र समय मे क्षायिक वत् अत्यन्त शुद्ध व निमल रहता है, अत शुद्धता की अपेक्षा क्षायिक व औपशमिक मे कोई अन्तर नहीं । केवल दोनों के काल मे अन्तर है, पर नय विवरण मे काल का ग्रहण नही वस्तु के भाव का ग्रहण है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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