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१२ पारिणामिकादि भावो का समन्वय
अवस्था या पर्यायों को भी क्षणिक ही कहा जायेगा । जीव द्रव्य के इन क्षणिक भेदो को हम द्रव्य पर्याय कहते है पर्याय तो इसलिये कि यह सर्व भेद क्षणिक है, त्रिकाली नही । और द्रव्य इसलिये कि इनमे से कोई भी भेद जीव के किसी एक गुण की किसी पर्याय विशेष रूप नही है, बल्कि सर्व ही गुणों की उतने लम्बे क्षणो तक टिकने वाली क्षाणिक शुद्ध या अशुद्ध पर्यायो का एक रस रूप पिण्ड है । अर्थात् इन सर्व जीव के भेदो मे किसी न किसी रूप मे ज्ञान, चारित्र, श्रद्धा व वेदना आदि गुण अखण्ड रूप से पाये जाते हैं । इसलिये इन भेदो को द्रव्य पर्याय कहते है |
७ श्रात्मा व उसके अग
१२ पारिणामिकादि
भावो का समन्वय
आत्मा के इन भावो के विशेष स्पष्टीकरणार्थ कुछ गंका समाधान किया जाना यहा आवश्यक है ।
(१) प्रश्नः -- एक अखण्ड वस्तु मे पारिणामिक व औदयिकादि भावो का विवेक कैसे किया जाये ?
उत्तर
द्रव्य के अगों का समन्वय करते हुए पहिले वाले अध्याय में बताया जा चुका है कि वस्तु की फिल्म बना कर उसे दो ढगो से पढ़ा जा सकता है एक तो पृथक पृथक फोटुओ को देख कर और दूसरे सारी की सारी फिल्म को फैला कर । इसी में तीसरा ढग और देखिये |
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लीजिये पूर्वोक्त २७ फोटो वाली मेरे जीवन की इस फिल्म को फैला लीजिये | देखिये प्रत्येक फोटो मे से छन कर कुछ प्रकाश आ रहा है । किसी फोटो मे से कम और किसी मे से अधिक, किसी मे से किसी आकार का और किसी मे से किसी आकार का । यदि इस प्रकार सामान्य को पढे तो पृथक पृथक फोटुओं मे से छन कर आने वाले उस प्रकाश की जाति मे क्या अन्तर