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७. अात्मा व उसके अग १४४ . ११. ग्रात्मा की द्रव्य
पर्यायो का परिचय रहे, बीच मे त्रस न बने, तो यह काल स्थावर काल कहलाता है । यह यद्यपि त्रस के काल से बहुत लम्बा है, पर सामान्य ससारी जीव के काल से वहुत छोटा है। इसी प्रकार स्थावर के पृथिवी आदि प्रत्येक भेद का पृथक पृथक धारा रूप काल स्थावर सामान्य से बहुत छोटा है । और दो इन्द्रिय आदि त्रस के प्रत्येक भेद का धारा रूप काल त्रस सामान्य से बहुत छोटा है । आगे भी इसी प्रकार प्रत्येक उत्तर भेद, का काल अपने मल सामान्य भेद की अपेक्षा अधिक अधिक छोटा होता चला जायेगा। यहा तक की मनुष्य का धारा रूप काल अर्थात मर मर कर पुनः पुनः मनुष्य ही बनता रहे तो अनुमानत अधिक से अधिक चार पांच वार. ही बन पायेगा । और इस प्रकार मनुष्य का काल लगभग अधिक से अधिक ४०० वर्ष लगा लीजिये । यहा आगम का आधार न लेकर स्थूल रूप से समझाया जा रहा है ऐसा समझना । आगम में कर्मभूमिज व भोगभूमिज मनुष्य व स्त्रियो को मिला कर मनुष्य का सामान्य काल ३ पल्य व ४७ पूर्व कोडि कहा गया है उस की यहां अपेक्षा नही है। यह काल या आगम कथित उसका ३ पल्यादि काल तो अपने पूर्व मे पडे 'सज्ञी' के काल से बहुत छोटा है । और आज दीखने वारे आपके इस भव का काल तो केवल ८० वर्ष ही है । जो उस धारा प्रवाही सामान्य मनुष्य के काल से भी बहुत छोटा है, इस की भी एक युवावस्था का काल केवल ४५ साल (१५-६० तक की आयु वाला) रह जाता है, जो उस एक भव से मी छोटा है । और इस से भी आगे यदि और सूक्ष्म दृष्टि से देखे तो यह युवावस्था प्रतिक्षण बुढापे की और जा रही है। तब तो इस का एक क्षणिक भेद केवल उस छोटे क्षण जितना ही रह जाता है।
इस प्रकार हमने देखाकि प्रत्येक नीचे नीचे के भेद का काल ऊपर ऊपर के भेद से बराबर अधिकाधिक छोटा होता हुआ अन्त मे एक क्षण मात्र बन बैठा । अतः उन लम्बे कालों में स्थित जीव की