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१०. वस्तु मे पाचों भावी का दर्शन
७. आत्मा व उसके अग
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१० लाख हार होंगे । यदि पूछें कि स्वर्ण इस पृथिवी पर कितना होगा, तो भी अनुमान के आधार पर सारे हारो मे सारे कुंडलो मे सारे अन्य जेवरो व सारे फासों में दीखने वाले स्वर्ण को जोड़ कर कह सकेंगे, कि लगभग होगा । १० टन सोना सारी पृथिवी पर । यदि पूछ कि बताइये कुल स्वर्णत्व कितना होगा तो क्या कहेंगे। आप ? स्वर्णत्व का क्या कितना उतना पना ? वह तो एक भाव है । एक रत्ती स्वर्ण मे भी उतना ही, और १० टन स्वर्ण मे भी उतना ही । हार में भी उतना ही और फासे में भी उतना ही । खोटे स्वर्ण में भी वैसा व उतना ही और खरे स्वर्ण मे भी वैसा व उतना ही ।
बस इसी पर से अनुमान लगा लीजिये कि पारिणामिक भाव एक होता है न अनेक, वह तो एक अनेक की कल्पना से अतीत एक रूप होता है । वह न वजन मे इतना होता है न कितना । वह तो इतने कितने की कल्पना स अतीत अपने जितना ही होता है ।
इसी प्रकार सर्वत्र समझना । पारिणामिक भाव का त्रिकाली शुध्द पना वास्तव मे शुध्दता अशुद्धता की कल्पना से अतीत कोई अवक्तव्य शुद्धता है । यह अनुमान गम्य है शब्द गम्य नही । यह क्षायिक भाव की शुद्धतावत नही है । वह तो अशुद्धता का अभाव करने पर प्रगट हुआ वक्तव्य व दृष्ट भाव है । इसी प्रकार पारिणामिक भाव का एक पना, एक अनेक पने की कल्पना से अतीत कोई अवक्तव्य एक पना है । यह अनुमान गम्य है शब्द गम्य नही । क्षायिक भाव का एक जातीय पना तो अनेक फासो मे दीखने वाला एकी भाव है । सो अनेकता सापेक्ष है । इसी प्रकार अन्य सारी बाते भी इस पारिणामिक भाव मे जब जहा तहां बताने मे आयेगी, तब शब्दो मे ऐसा लगेगा कि यह तो क्षायिक भाव मे भी बताई गई है । परन्तु उनमे का यह महान अन्तर अनुमान मे ले लेना । सर्वत्र य ही समझना कि पारिणामिक भाव मे दर्शाई जाने वाली व े सब वाते अवक्तव्य व व अदृष्ट है, और क्षायिक भाव में दीखने वाली वही बाते वक्तव्य व
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