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७ आत्मा व उसके अंग
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३ चारित्र
उसी के आधार पर गुण रूप त्रिकाली शक्ति का अनुमान लगाया जा सकता है उपर ज्ञान के प्रकरण में भी यही बात लाग होती है। और आगे भी यही लागू होगी व्यक्ति या पर्यायो की ओर लक्ष्य दिलाकर उस शक्ति सामान्य को अनुमान का विषय बनाने का प्रयत्न किया जायेगा ।
___ चारित्र गण की कई व्यक्तिये हमे प्रत्यक्ष अनुभव मे आती है । उनमे से १३ प्रधान है १ क्रोध, २ अभिमान, ३ मायाचार, ४ लोभ, ५ हास्य भाव, ६ किसी पदार्थ के प्रति रति व आसक्ति भाव, ७ किसी पदार्थ के प्रति का अरति या अरूचि भाव ८ शोक भाव, ९ भय भाव, १० ग्लानि व घृणा भाव ११ स्त्री, १२ पुरुष व १३ नपु सक मे उठने वाले उस उस जाति के मैथुन व काम सेवन रूप भाव । यह तेरह के तेरह भाव सर्व जनसमत है । इन्हे ही सक्षेप मे कहे तो दो शब्द राग व द्वेष द्वारा कहा जा सकता है। राग भाव कहते है आर्कषण भाव को और द्वेष भाव कहते है हटाव के भाव को । सो उपरोक्त १३ मे से क्रोध, मान, अरति, शोक, भय व जुगुण्सा ये ६ भाव तो द्वेष रूप है और माया, लोभ, हास्य, रति, व तोनी प्रकार के मैथुन भाव ये सात राग रूप है । सो ज्ञान की इन राग द्वेप मे रगी हुई विचारणाओ का नाम चारित्र है।
इन उपरोक्त राग द्वेष का तो हमे परिचय है क्योकि यह तो हमारे जीवन के अङ्ग है, पर इन से विपरीत वीतरागता से परिचय नही है । वास्तव मे चारित्र की अनन्त शक्ति उस वीतरागता मे ही निहित है । उस वीतरागता की किंचित पहिचान निम्न भावो पर से की जा सकती है जो कि उपरोक्त १३ से विपरीत भाव है । क्रोध के विपरीत क्षमा है, जो इस प्रकार से प्रगट होता है कि अरे ! जाने भी दे क्या लेगे लडकर । जा भाई जा । तेरी करनी तेरे साथ । अभिमान को दबाते हुओ मार्दव भाव प्रगट होता है जिसका रूप