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६. द्रव्य सामान्य
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५. सामान्य विशेष
तत्व परिचय कि अपने से ऊपर वाले विकल्प में स्वयंभेद रूप से रहते है। इस प्रकार अपने से ऊपर की अपेक्षा सर्व भेद विशेष कहलाते है, और अपने अवान्तर भेदों की अपेक्षा वही सामान्य कहलाते है। सामान्य व विशेष विभाग का क्रय क्षेत्र काल व भाव में भी सर्वत्र इसी प्रकार जानना । कथन को सरल बनाने के लिये उनके मध्य वाले अवान्तर भेदो को छोड़ कर केवल सर्व प्रथम सामान्य व अन्तिम विशेष को ही दर्शाया जायेगा ।
क्षेत्र की अपेक्षा सर्व व्यापी एक अखण्ड विश्व का आकार सामान्य क्षेत्र है, क्योकि इसके अन्तर्गत अनन्तो प्रदेशों का विभाग किया जाना सम्भव है। एक प्रदेश इसका विशेष है, क्योकि उसमे अन्य प्रदेशो की कल्पना सम्भव नहीं । इन दोनों के मध्य मे सामान्य जीव द्रव्य कालोक प्रमाण असंख्यात प्रदेशी आकार, या मनुष्य का सीमित असख्यात प्रदेशी आकार, अथवा पुद्गल स्कन्धो के यथा योग्य बडे छोटे सर्व ही दृष्ट आकार अवान्तर सामान्य या विशेष क्षेत्र है । पुद्गल स्कन्धों मे से कोई अनन्त प्रदेशी होता है । कोई असंख्यात या संख्यात प्रदेशी । परमाणु का एक ही प्रदेश होता है ।
काल की अपेक्षा अनादि से अनत 'पर्य त एक अखण्ड काल की धारा त्रिकाली सामान्य काल है, क्योकि इसके अन्तर्गत अनेकों समयो का विभाग किया जाना सम्भव है। एक समय मात्र काल विशेष काल है। इन दोनो के मध्य मे सैकण्ड, मिनट, घण्टा, दिन, पक्ष, मास, वर्ष, कल्प आदि अवान्तर सामान्य या विशेष काल है । काल का अर्थ यहा काल नही बल्कि उतनी उतनी स्थिति प्रमाण द्रव्य की पर्याये है, यह बात न भूलना।
भाव की अपेक्षा पूर्ण शक्ति युक्त त्रिकाली, सामान्य गुण का भोव सामान्य है, क्योकि उसमे अनेको अविभाग प्रतिच्छेद का - विभाजन