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६. द्रव्य सामान्य
३. पर्याय एक समयों की तो होगी ही, पर केवल एक 'समय की वस्तु में त्रिकाली कैसे समायगी इस त्रिकाली दर्शन अभाव के में ही वक्ता की बात कदाचित समझ में नहीं आती, और भंझलाहर्ट सी उत्पन्न होने लगती है, जैसे कि महावीर प्रभु को पापी सुन कर आप में हुई थी। - - . .
.' प्रभो! महावीर प्रभु का त्रिकाली चित्रण : दृष्टि'-'मे' रखकर उनके सर्व अंगो मे से जरा भील की पर्याय वाला अंग तो उठाकर देखे । क्या वह पापी नहीं है ? क्या पापी रूप से दीखने वाला वह व्यक्ति कोई और है ? भले उस समय : उसका नाम-कुछ और हो, पर व्यक्ति तो वही है। फिर यह झुंझलाहट क्यों ? मैने झूठ क्या कहा आप भी तो स्वंय: अनेको बार ऐसा, कहते है । - क्या भूल गये ? याद करो वह दिन जब आप मुझे दीवारा परे खिचे उस भील के चित्र को दर्शाते हुये कह रहे थे, कि यह महावीर स्वामी का जीव था। वर्तमान काल सम्बन्धी भाषा का प्रयोग किया था । भूतकाल सम्बन्धी प्रयोग तो तब करते जो चित्र सामने न होता। बस उसी प्रकार भले दीवार पर खिचा चित्रानाही पर हृदय पंट पर खिचा वह चित्र अब भी मेरे सामने प्रत्यक्ष है, जिसके आधार पर कि मै उन्हे 'पापी है' ऐसा कह रहा हूं ‘पापीथे' ऐसा नही कह रहा हू । इसी प्रकार सर्वत्र जानना। . . . . - । ।
- द्रव्य व उसके अगो का सामान्य परिचय दे देने के पश्चात ३. पर्यायः उनकी कुछ विशेषताओ को भी जान लेना योग्य है। गुण व पर्यायो का एक अखड पिण्ड द्रव्य है ऐसा बता दिया गया । अतः यह कहा जा सकता है कि ये गुण व पर्याय इस द्रव्य के अग या विशेष है, तथा द्रव्य स्वयं अंगी है । यद्यपि पहिले पयाय शब्द का प्रयोग परिवर्तन शील अंग के लिये किया गया है, परन्तु वास्तब मे इस शब्द का अर्थ है वस्तु के विशेष, वे भले गुण रूप हो कि परिवर्तन शील पर्याय रूप । वे विशेष ही दो प्रकार के होते है-अक्रम वर्ती या