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मेरी जीवन गाथा रह गया है। जहाँसे शिक्षाका श्रीगणेश होता है वहाँ पहला पाठ यही होता है कि आजीविका क्सि प्रकार होगी तथा ऐसा कौनसा उपाय होगा कि जिससे संसार की विभूति हमारे ही पास आ जावे, संसार चाहे किसी आपत्तिमे रहे। प्रिन्सिपल साहबके इन हार्दिक तथ्य उद्गारोंसे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई।
अगले दिन सामायिकके वाद वसूमाके लिये चल दिये। मवानासे वसूमा आठ मील होगा। घाममे चलना पड़ा जिससे महान् कष्ट हुआ । रात्रिको ज्वर आ गया। हम विलकुल निर्विचार आदमी हैं जो विना विवेकके काम करते हैं। ८ मील घाममे चलना बहुत ही कष्टकर हुआ। हमारी शारीरिक शक्ति छति क्षीण हो गई है तथा आत्माकी स्फूर्ति जाती रही है । इसका कारण मोहकी सवलता है। कह देते हैं कि मोह शत्र है परन्तु स्वयं उसके कर्ता है, पर पदार्थके शिर दोप मढ़ते हैं। अज्ञानी जीवको अपना दोप नहीं दिखाता, परमे ही नाना कल्पनाएं करता है। देहलीवाले महाशयने यहाँ आहार दिया। यहाँ श्री शान्तिनाथ स्वामीके सहश चन्द्रप्रभस्वामीका प्रतिविम्ब अति मनोज है, वायु अति प्रशस्त है, मनुष्य सरल हैं परन्तु ज्ञानकी हीनतासे जैनधर्मका प्रचार जैसा चाहिये वैसा कार्यरूपमे परिणत नहीं होता। यहाँसे ६ मील चलकर मीरापुर आ गये। ग्राम बड़ा है किन्तु मुसलिम जनताका प्रभाव अधिक है। वर्तमानमे यद्यपि काग्रमका साम्राज्य होनेसे प्रभाव दब गया है तथापि समय पा कर आगे पुनः आविर्भूत हो सकता है। चैत्यालयमे प्रातः प्रवचन हा पर जनता नहीं थी । यहाँ धर्मकी रुचि तो है परन्तु साधन नहीं। यहाँ पर शीतलप्रसाद जी तथा वावरामजीके घर प्रतिष्टित हैं। उनका चित्त धर्ममे उपयुक्त है। श्री वावराम जी वरावर यावृत्त्यम रहे । उनका लड़का धनेशचन्द्र बहत ही योग्य है । १ बजे ममा