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मेरी जीवन गाथा भोजन करते समय मुझे लगता है कि यदि मैं पाणिपात्रभोजी होता तो लोग यह अधिक भोजन कहाँ परोस देते ? यह मेरी दुर्वलता है, संकोचवश होकर यह अनर्थ होता है। संकोचका कारण भी एक प्रकारसे स्वप्रशंसाका लोभ है--कोई अप्रसन्न न हो जाय यह भावना है। जिस जीवके प्रशंसाकी इच्छा नहीं वही निर्भीक कार्य कर सकता है। ___ एक दिन स्त्री समाजके सुधारके अर्थ भी व्याख्यान हुआ। मैंने कहा कि यदि मनुष्य चाहे तो स्त्रीसमाजका सहज कल्याण हो सकता है। यदि यह समाज मर्यादासे रहे तो कल्याण पथ दुर्लभ नहीं। सबसे प्रथम तो ब्रह्मचर्य पाले, स्वपतिमें संतोप करे तथा पुरुप वर्गको उचित है कि स्वदारमें सन्तोष करे। जब स्त्रीके उदरम वालक आ जावे तवसे लेकर ३ वर्ष ब्रह्मचर्य पाले तथा ब्रह्मचर्य पालनेवालोंको आत्मीय वेषभूषाकी चटक-मटक मिटा देना चाहिये, क्योकि वेषभूषाका प्रभाव मन पर पड़ता है। यदि आजकी जनता ब्रह्मचर्यके इस महत्त्वको हृदयांकित कर सके तो उसकी सन्तान पुष्ट हो तथा जन संख्याकी वृद्धि सीमित रहे।
आज मनुष्यकी आयके साधन सीमित हो गये हैं और उसके विरुद्ध सन्तानमें वृद्धि हो रही है जिसके कारण उसे रात-दिन संक्लेशका अनुभव करना पड़ता है। इस संक्लेशसे बचनेका सीधा सच्चा उपाय यही है कि पुरुष तथा स्त्रीवर्ग अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करे।
एक दिन व्रतीसम्मेलन हुआ। व्रती लोगोंने भाषण दिये। प्रायः सफलता अच्छी मिली। लोगोंके हृदयमे व्रतका महत्व भर गया यही तो उसकी सफलता थी। लगभग वीस आदमियों ने ब्रह्मचर्य व्रत लिया, छोटे छोटे बालकोने रात्रि भोजन त्याग किया, अनेकोंने अष्टमी चतुर्दशीके दिन ब्रह्मचर्य व्रत लिया।