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हस्तिनागपुर है कि उपशान्त मोहसे लेकर त्रयोदश गुणस्थान पर्यन्त योगोंकी प्रवृत्ति स्थितिवन्धकी उत्पादक नहीं, अतः अभिप्रायको निर्मल बनानेकी चेष्टा करो। योगोंकी प्रवृत्तिमें मत उलझे रहो। योगोंमे शुभता और अशुभता तन्मूलक ही है। संसारका मूल कारण कपाय है। इसके बिना योगका कोई महत्त्व नहीं। वृक्षकी जड़ कटनेके बाद हरापन स्थितिका कारण नहीं। अतः हमे आवश्यकता कपाय शत्रको पराजित करनेकी है। जिन्होंने इस पर विजय पा ली वे सिद्ध पदके अधिकारी हो चुके। ज्ञानमें जो ज्ञेय आता है अर्थात् ज्ञानका जो परिणमन ज्ञेय सहश होता है उसका कारण ज्ञानावरण कर्मका क्षयोयशम है तथा ज्ञानमे जो रागादि प्रतिभासता है उसका कारण मोहनीय कर्मका उदय है। उस उदयसे चारित्र गुण विकृत होता है। वही गुण विकृतरूप होकर ज्ञानमे आता है। ज्ञेय, यह दोनों हैं परन्तु एक ज्ञेय वाह्य है। उसके निमित्तसे ज्ञान साक्षात् ज्ञयाकार हो जाता है। रागमे चारित्र गुणकी विकृति जो होती है वह ज्ञानमें भासती है। परमार्थतः राग भी ज्ञेय है और घट पटादि भी ज्ञेय हैं। ___ हम तो कुछ विद्वान् नहीं परन्तु विद्वान् भी वक्ता हो तब भी ये भद्रगण-नाम मात्रके जैनी उस वक्ताके प्रवचनका लाभ नहीं उठाते। अब संयमके स्थानमे अष्टमूलगुणधारणका उपदेश रह गया है। बहुतसे बहुत वलका प्रभाव पड़ा तो बाजारकी जलेवी त्याग तक सीमा पहुँच गई है। ___प्रवचनके बाद भोजन हुआ। भोजन बहुत ही संकोचसे होता है । कारण उसका यह है कि पदके अनुकूल प्रक्रिया उत्तम नहीं। अनेक घरसे भोजन आता है तथा अति भोजन परोस देते हैं जो कि आगम विरुद्ध है। भोजन थालीमें छूटना नहीं चाहिये पर मेरी थालीमें १ आदमीका भोजन पड़ा रहता है।