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मेरी जीवन गाथा
उस बन्धके कारण दोनों द्रव्य आत्मीय स्वरूपसे च्युत हो रहे हैं । जैसे स्वर्ण और रजतको गला कर यदि १ पिण्ड कर दिया जावे तो उस अवस्थामे न वह केवल स्वर्ण है और न रजत है किन्तु दोनोंकी विकृतावस्था हैं । यद्यपि जिस समय उन दोको गलाया था उस समय उनमें जो चार आना भर स्वर्ण और चार आना भर रजत था वही पिण्डावस्थामे भी विद्यमान है तथापि पर्यायदृष्टिसे न वह केवल स्वर्ण है और न केवल रजत ही है किन्तु स्वर्ण और रजतकी १ मिश्रित अवस्था है । इसी प्रकार आत्मा और पुद्गलकी वन्धावस्थामे एकमेक प्रतीति होती हैं । यद्यपि दोनों पदार्थ भिन्न भिन्न हैं तथापि मोहके कारण भिन्नता दृष्टिपथ नहीं होती । भिन्नताका कारण जो भेदज्ञान है वह मद्यपायी मनुष्यकी विवेकशक्ति के समान अस्तमितके समान हो रहा है | अतः वेटा ! हमारा यही उपदेश है कि मोहको त्यागो और आत्मकल्याणमे आओ। केवल जाननेसे कुछ न होगा । अस्तु, महाराजकी यह कथा आनुपतिक आ गई। मेरठमे कई दिन रहे । यहाँका जलवायु अत्यन्त स्वास्थ्यप्रद हैं । यहाँकी मण्डली भी धार्मिक है- धार्मिक भावोंसे श्रोत-प्रोत है । सदरमे २ जिन मन्दिर हैं । यहाँ पर भी लोगोंका वर्ताव धार्मिक भावोंसे अनुस्यूत है । इसी तरह तोपखानेमे भी १ सुन्दर जिन मन्दिरका निर्माण कराया गया है। यदि त्रुटि देखी गई तो यही कि समाजमे संघटन नहीं, अन्यथा आज संसारमें आत्माका जो वास्तव धर्म है उसका विकाश होने में विलम्ब न होता ।
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हिंसा धर्म है और वह आत्माका वह परिणाम है जहाँ मोह राग-द्वेपकी क्लुपता नहीं होती। उस तरह शुद्ध अवस्था है वही श्रहिंसा है । विषय लालनासे विपयोंमें जो प्रवृत्ति हो रही है वह हिंसा के
आत्माकी जो पञ्चेन्द्रियों के श्रद्धानमात्रसे