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मेरी जीवन गाथा
रुपये हो गये । १००००) दस हजार तो आटेकी मिलवालों ने दिये । आपसे यहाँकी जनता प्रसन्न है । यहाँ बाबू ऋषभदासजी साहब अच्छे विद्वान् हैं । आपके प्रवचनसे हमें बहुत आनन्द आया | आपको चारों अनुयोगोंका ज्ञान है। जनता आपके प्रवचनोंसे बहुत प्रसन्न रहती है । आपने व्यापारका त्याग कर दिया है। आपके पुत्र भी बहुत सुशील हैं । श्रापका कुटुम्ब आपके अनुकूल हैं । आप विद्वान् भी हैं, सदाचारी भी हैं, त्यागी भी हैं, वक्ता भी हैं। आपके समागमसे अपूर्व शान्ति हुई । आप गृहमे रहकर जलमें कमलके समान अलिप्त हैं । आपके साथ वार्तालाप करनेसे श्री आचार्य समन्तभद्रके रत्नकरण्ड श्रावकाचारका श्लोक
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गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो निर्मोहो नैव मोहवान् / अनगारो गृही श्रेयान् निर्मोहो मोहिनो मुनेः ||
याद आ गया और दृढ़तम विश्वास हो गया कि कल्याण मार्गका बाधक अन्य पदार्थ नहीं। इसका अर्थ यह नहीं कि निमित्त कारण कुछ नहीं करता । यदि पदार्थमे योग्यता है तो निमित्त उसके विकास मे सहकारी हो जाता है । चनामे विकास होनेकी योग्यता है, अतः उष्ण वालु पुञ्जका संसर्ग पाकर वह खिल जाता है । वालुका पिण्ड अग्निका निमित्त पाकर उष्ण तो हो जाता है परन्तु विकसित नहीं होता और निजकी योग्यता रहने पर भी अग्नि रूप निमित्तकी सहायताके विना चना त्रिकसित नहीं होता । इससे सिद्ध होता है कि कार्यकी सिद्धिमें पढ़ार्थकी योग्यता और वाह्य निमित्तका आलम्बन दोनों ही कार्यकारी हैं ।
मेरठ पहुँचते ही हमे वाचा लालमनजीका स्मरण हो आया । आपकी कथा वड़ी रोचक है । आपके नेत्रोंकी दृष्टि जाती रही