________________
४८०
मेरी जीवन गाथा जनोंमें वाहरसे श्री पं० माणिकचन्दजी न्यायाचार्य, पं० वन्शीधरजी न्यायालंकार, पं०मक्खनलालजी, पं० लालारामजी, पं० फूलचन्द्रजी, पं० कैलाशचन्द्रजी, पं० इन्द्रलालजी आदि अनेक विद्वान् आये थे। सागरके सव विद्वान् तथा छात्रवर्ग थे ही।
सागर विद्यालयवालोंने उत्सवका अध्यक्ष मुझे वना दिया। उत्सवके प्रारम्भमे विद्यालयमे अबतक पढ़कर निकलनेवाले स्नातकों (छात्रों) की ओरसे ५२ स्वर्णमुद्राएँ विद्यालयकी सहायताके लिए हमारे सामने रखी गई। विद्यालयके ५२ वर्षका कार्यपरिचय जनताके समक्ष उसके मन्त्री श्री नाथूराम गोदरेने रक्खा । पं० फूलचन्द्रजीने विद्यालयके लिए अपील की जिससे ५०-६० हजार रुपयेके वचन मिल गये। फुटकर सहायता भी लोगोंने बहुत दी। उत्सवका कार्यक्रम दो दिन चलता रहा और जनता बड़ी प्रसन्नतासे उसमे भाग लेती रही। ___ श्री कानजी स्वामी फागुन सुदी ५ को संघ सहित मधुवन आ गये थे। जितने दिन रहे प्रायः हमसे मिलते रहे। प्रसन्नमुख तथा विचारक व्यक्ति हैं। आप प्रारम्भमें स्थानकवासी श्वेताम्बर थे परन्तु श्री कुन्दकुन्दस्वामीके ग्रन्थोंका अवलोकन करनेसे आपकी दिगम्बर धर्मकी ओर दृढ़ श्रद्धा हो गई जिससे आपने स्थानकवासी श्वेताम्बर धर्म छोड़कर दिगम्बर धर्म धारण कर लिया। न केवल आपने ही किन्तु अपने उपदेशसे सौराष्ट्र तथा गुजरात प्रान्तके हजारों व्यक्तियोंको भी दिगम्बर जैन धर्ममे दीक्षित किया है।
आपकी प्रेरणासे सोनगढ़ तथा उस प्रान्त मे अनेक जगह दिगम्बर जैन मन्दिरोंका निर्माण हुआ है।
आपके प्रवचन प्रायः निश्चय धर्मकी प्रमुखता लेकर होते हैं तथा आपका जो साहित्य प्रकाशित हुआ है, मैंने तो आनुपूर्वीसे देखा नहीं पर लोग कहते हैं कि निश्चयधर्मकी प्रधानताको लिये