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भारहीनो वभूव
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होता है । अनन्तर भोजनके बाद ११३ बजेसे सामायिक सब त्यागीवर्ग करते हैं । फिर २ बजेसे शास्त्रप्रवचन होता है । अनन्तर सायंकालकी सामायिक और रात्रिके प्रारम्भका शास्त्रप्रवचन होता है । सब त्यागी तथा धर्मलाभकी भावनासे यहाॅ रहनेवाले अन्य महानुभाव इन सब कार्यक्रमोंमें शामिल रहते हैं । मैं भी सब कार्यक्रमोंमें पहुँच जाता था । प्रातःकालका प्रवचन मैं कर देता था परन्तु मध्याह्न और रात्रिके प्रवचन अन्य विद्वान् करते थे । मैं श्रवण करता था । प्रातःकालके प्रवचनमें कभी समयसार. कभी प्रवचनसार, कभी पञ्चास्तिकाय, कभी नियमसार आदि कुन्दकुन्द स्वामीके ग्रन्थ रहते थे । कुन्दकुन्द स्वामीने अपने ग्रन्थोंमे जो पदार्थका वर्णन किया है वह वहुत ही सरलताके साथ वस्तुके शुद्ध स्वरूपको बतलानेवाला है । मेरी श्रद्धा तो यह है कि इस युगमे कुन्दकुन्द के समान वस्तुतत्त्वका निरूपण करनेवाला दूसरा आचार्य नहीं हुआ । मध्याह्न से सैद्धान्तिक ग्रन्थका विवेचन रहता था और रात्रिको सर्वसाधारणोपयोगी हिन्दी ग्रन्थ तथा प्रथमानुयोगके ग्रन्थोंका स्वाध्याय
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चलता था ।
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यहाँ बाहरसे अनेक विद्वान् तथा विशिष्ट महानुभाव यदा कदा आते रहते हैं । उनके भोजनकी व्यवस्थाके लिये रायवहादुर श्रीचाँद मल्लजी रांचीवालोंकी ओर से एक चौका खोल दिया गया जिसमे अतिथियोंके भोजनकी उत्तम व्यवस्था बन गई । यहाँका प्राकृतिक दृश्य भी नयनाभिराम है । पास ही हरे भरे गिरिराजके दर्शन होते हैं । श्रीपार्श्व प्रभुका निर्वाण स्थान अपनी निराली शोभा से दर्शकोको अपनी ओर अकर्षित करता रहता है । आकाशको चीरती हुई गिरिराजकी हरी भरी चोटियाँ कभी तो धूमिल घनघटासे आच्छादित हो जाती हैं और कभी स्वच्छ - अनावृत दिखाई देती हैं । प्रातःकालके समय पर्वतकी हरियालीपर जब दिनकरकी लाल