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मेरी जीवन गाथा मन्दिर है। ग्राममें एक चैत्यालय है। सेठ भंवरीलालजीके यहाँ आहार हुआ। यहाँ आरासे व्र० चन्दावाईजी आ गई। बजे सभा हुई जिसमें भगतजी तथा नाथूरामजीके भाषण हुए । यहाँ ३दिन लग गये । यहाँसे मुन्सरिया तथा चौधरीवादमे विश्राम किया। यह लघुयात्रा सुखद रही।
भारहीनो वभूव अगहन सुदी ३ संवत् २०१० को प्रातः चौधरीवादसे चलकर ८१ बजते-बजते ईसरी पहुँच गये। चित्तमे बड़ा हर्प हुया। एक बार यहाँ आकर पुनः परिवर्तन करनेके लिय निरल पड़ा था और उस चक्रमें फॅस १० वर्ष यत्र तत्र भटकता रहा। शरीरमे शक्ति नहीं थी फिर भी भटकना पड़ा। श्राज पुनः श्रीपा प्रभुकी निर्माण भूमिके समीप श्रा जानेसे हृदयमं जो 'प्रानन्द एमा वह शब्दोंके गोचर नहीं। यहाँके समस्त त्यागियों तथा परियर । अन्य लोगोंको भी महान् हर्प हुआ।