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गयामें चतुर्मासका निश्चय
४५३ गये। यहाँ दिनभर रहकर शामको १ मील आगे चले तथा १ भूमिहारके स्थान पर ठहर गये। बहुत ओदरसे उसने रक्खा । भोजनके लिए भी अत्यन्त आग्रह किया। प्रातःकाल यहाँसे ४ मील प्रस्थान कर गुण्डू आगये। यहाँ एक फूलचन्द्रजी जैनका घर है उन्हींके यहाँ ठहर गये । भोजन भी उन्हींके घर हुआ। प्रकृतिका सज्जन है । गमीका प्रकोप पूर्णरूपसे था परन्तु सहन करना पड़ा। सायंकाल यहाँसे चलवर सलेमपुर पहुंच गये। दूसरे दिन प्रात काल ४ मील चलकर परैया आगये। यहाँ १ गुवालाके घर निवास किया। यहाँपर आहार देनेके लिये गयासे कई औरतें आई उन्होंने भक्तिसे आहार कराया। दुपहरी १ झोपड़ीमे विताई। सायंकाल यहाँसे २ मील चलकर १ पाठशालामे ठहर गये। यहॉपर एक ग्रामसे २० बालक तथा आदमी दर्शनार्थ आयें। लोगोंमे ऐसी श्रद्धा हो गई है कि ये महात्मा हैं परन्तु महात्मा तो अत्यन्त निर्विकार जीव होता है यह कौन पूछनेवाला है।
ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्याको यहाँसे ५ बजे चलकर ७३ बजे गया आगये। बड़े ठाट वाटके साथ स्वागत हुआ। अन्तमे जैन भवनमे ठहर गये। बहुत रम्य स्थान है । समीप ही फल्गु नदी वहती है। भवनसे निकलते ही दो मन्दिर हैं-१ प्राचीन और १ नया । यहाँ जैनियों के बहुत घर हैं। सम्पन्न हैं। श्री चम्पालाल सेठीने मुझे इस ओर लानेमे बहुत प्रयत्न किया है। उन्हींका प्रभाव था जो मैं इस वृद्धावस्थामें इतना लम्बा मार्ग चलनेके लिए उद्यत हुआ और यहाँतक आगया। आप घरसे निःस्पृह रहते हैं । बाबू सोनूलालजी भी धार्मिक व्यक्ति हैं। आपका अधिकांश समय धार्मिक कार्यों में ही व्यतीत होता है। श्री ब्र० पतासीवाईजी के विपयमे क्या लिखू ? वह तो अत्यन्त शान्तमूर्ति तथा धर्मसे अनुराग रखनेवाली है। आपको देखकर वाईजीका स्मरण हो पाता है। आपके प्रभावसे