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गयामें चतुर्मासका निश्चय
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साथ मे २ अन्य त्यागियोंका भी भोजन हुआ। सायंकालका भ्रमण स्थगित रहा। दूसरे दिन प्रातःकाल ५ मील चलकर औरगाबाद आगये। यहाँपर ईसरीसे पं० शिखरचन्द्रजी आ गये। आप बहत ही योग्य तथा शान्तस्वभावी विद्वान् हैं। आपने शिष्ट व्यवहार किया। आजीविकासे चिन्तित हैं फिर भी अन्तरङ्गसे तत्त्व विचारमे मग्न रहते हैं। समाजकी दशा क्या कहे ? वह व्यर्थ कार्योंमे धनका दुरुपयोग करनेमे नहीं चूकती पर ज्ञान भण्डार आजीविकाके बिना चिन्तातुर रहते हैं। एक समय तो वह आ गया था कि जब संस्कृत विद्याके जानकार विद्वान् समाजमें बहुत ही विरल हो गये थे परन्तु आज सौभाग्य मानना चाहिये कि इस विद्याके जानकार विद्वान् समाजमे उत्पन्न हुए हैं और उनके द्वारा जैनधर्म तथा जैनसमाजका उत्कर्ष बढ़ा है । यदि जैनसमाज उदारतासे इनकी रक्षा करे तो वे स्थिर रहकर समाज तथा धर्मका उत्कर्ष बढ़ानेमे समर्थ होंगे । आपके आनेसे आज तत्त्वचर्चाका अच्छा आनन्द रहा।
आगामी दिन प्रातःकाल औरंगाबादसे ४ मील चलकर औरा आ गये । यहां १ कुनमीके मकानमे ठहर गये। मकान दोहरा था इसलिए गर्मीका प्रकोप न रहा। दिन सानन्द व्यतीत हुआ। ग्रामीण जनता दर्शनके लिये बहुत आई। मुझे लोगोंकी सरलता देख अनुभव हुआ कि यदि इन्हे कोई कल्याणका मार्ग बतानेवाला हो तो इनका उद्धार हो जाय । आज कल लोग व्याख्यान या उपदेश शहरके उन लोगोंको देने जाते हैं जिनके हृदय निरन्तर विषयकी लालसासे मलिन रहते हैं। उन सरल ग्रामीण मनुष्योंके पास कोई भी व्याख्याता या उपदेशक नहीं पहुँचते जिनके हृदय अत्यन्त उज्वल तथा पापसे भीरु हैं।
दूसरे दिन प्रातः औरासे ४३ मील चलकर शिवगंजमें निवास २६