________________
मेरी जीवन गाथा
गल्पवादमे जन्म गमा दिया। वाह्य प्रशंसाका लोभी महान् यापी है।'
'लोगों की अन्तरङ्ग भावना त्यागीके प्रति निर्मल है किन्तु इस समय त्यागीवर्ग उतना निर्मल नहीं।' ___'हम बहुत ही दुर्वल प्रकृतिके मनुष्य हैं, हर किसीको निमित्त मान लेते हैं, अपने आप चक्रमें आ जाते हैं, अन्यको व्यर्थ ही उपालम्भ देते हैं, कोई द्रव्य किसीका बिगाड़ सुधार करनेवाला नहीं “यह मुखसे कहते हैं परन्तु उस पर अमल नहीं। केवल गल्पवाद है। बड़े बड़े विद्वान् व्याख्यान देते हैं परन्तु उस पर अमल नहीं करते।' __ मथुरासे चलते चलते पद्मपुराणमे वर्णित मथुरापुरीका प्राचीन
वैभव एक वार पुनः स्मृतिमे आ गया। ___यहाँ पर मधु राजाका शत्रुघ्न के साथ युद्ध हुआ । शत्रुघ्नने छलसे उसके शस्त्रागारको स्वाधीन कर लिया । अस्त्रादिके अभावमे राजा मधु शत्रुघ्नसे पराजित हो गया किन्तु गजके ऊपर स्थित जर्जरित शरीरवाले मधुने अनित्यत्वादि अनुप्रेक्षाओंका चिन्तन कर दिगन्धर वेपका अवलम्बन किया। उसी समय शत्रुघ्नने आत्मीय अपराध की क्षमा मांगी-हे प्रभो । मुझ मोही जीवने जो आपका अपराध किया वह आपके तो क्षम्य है ही मै मोहसे क्षमा मांग रहा हूँ।
अलीगढ़का वैभव मथुरासे चलते ही चित्तमे संघसे विरक्तता हो गई । विरक्तताका कारण परको अपना मानना है। वह अपना होता नहीं, केवल परमे निजत्व कल्पना ही दुःखदायी है। चलकर वसुगाँवम ठहर गये । यहाँके ठाकुर नत्थासिंहजी बहुत ही सज्जन हैं । यहीं पर श्री मनीराम जाट मिलने आया, बहुत ही सज्जन था। उसके यह