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मेरी जीवन गाथा
बाप बता दे तो काशी न जाना पड़े । अन्तमे वह पागलकी भाँति नगरकी सड़कों पर पापका वाप क्या हैं? पापका बाप क्या है ? यह चिल्लाता हुआ भ्रमण करने लगा । एक दिन एक वेश्याने अपने घरकी छपरीसे उसे ऊपर बुलाया और कहा कि यहाँ आओ, पापका वाप मैं बताती हूँ । वह आदमी सीढ़ियोंसे जब ऊपर पहुँचा तो वह वेश्या जान बड़ा दुःखी हुआ और झटसे नीचे उतरने लगा । वेश्याने कहा - महाराज | ठहरिये तो सही आप जिस सड़क पर चल रहे थे उस सड़कपर तो वेश्या आदि सभी अथम प्राणी चलते हैं, फिर हमारा वह मकान उस सड़क से तो अच्छा है । आप इतनी घृणा क्यों करते हैं ? आपने हमारा घर अपनी चरणरजसे पवित्र किया इसलिए एक मुहर आपको देती हॅू।”—यह कहकर वेश्याने एक मुहर उसे दे दी । मुहर देख उसने सोचा कि यह ठीक तो कह रही है । आखिर यह मकान सड़क तो अच्छा हैं । कुछ देर ठहरनेके बाद वह जाने लगा तब वेश्याने कहा महाराज ! दो मुहरें देती हूँ | यह सामने पंसारीकी दूकान है इससे सीधा बुलाकर भोजन बना लीजिये, फिर जाइये। दो मुहरों का लाभ देख उसने सोचा कि मैं भी तो इसी पंसारीकी दूकान से खाद्य सामग्री लेता हॅू इसलिये वेश्याका इसके साथ क्या सम्बन्ध है ? २ मुहरें लेकर उसने भोजन बनाना शुरू किया । जब भोजन बन चुका तव वेश्याने कहा महाराज | मैंने जीवन भर पाप किये हैं । यदि आज आपके लिये. अपने हाथसे भोजन परोस सकूँ तो मैं पोपसे निर्मुक्त हो जाऊँ । इस कार्यके लिये मैं पाँच मुहरें आपके चरणों में चढ़ाती हॅू । पाँच मुहरोंका नाम सुनते ही उसके मुहमे पानी श्रा गया। उसने सोचा कि भोजन तो मेरे हाथका बनाया है। यदि दे वेश्या छूकर इसे मेरी थालीमे रख देती हैं तो इससे कौन सा धर्म हुआ जाता है । यह विचारकर उसने वेश्याको परोसनेकी ना