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मेरी जीवन गाया
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यह भी अपराधी है तो अपने बच्चों लवणांकुशकी ओर देखो और एक बार पुनः घरमें प्रवेश करो। परन्तु सीता अपनी दृढ़ता से च्युत नहीं हुई। उसने उसी वक्त केश उखाड़ कर रामचन्द्रजी के सामने फेंक दिये और जङ्गलमे जाकर आर्या हो गई। यह सब काम सम्यग्दर्शनका है । यदि उसे अपने कर्मपर, भाग्यपर विश्वास न होता तो वह क्या यह सब कार्य कर सकती ?
व रामचन्द्रजीका विवेक देखिये । जो रामचन्द्र सीताके पीछे पागल हो रहे थे, वृत्तों से पूछते थे - क्या तुमने मेरी सीता देखी है ? वही जब तपश्चर्यामे लीन थे तब सीताके जीव प्रतीन्दने नि उपसर्ग किये पर वह अपने ध्यानसे विचलित नहीं हुए। शुक्ल ध्यान धारणकर केवली अवस्थाको प्राप्त हुए ।
सम्यग्दर्शनसे आत्मामें प्रशम, संवेग, अनुकम्पा और आतित्य गुण प्रकट होते हैं जो सम्यग्दर्शनके अविनाभावी हैं। यदि आपमें ये गुण प्रकट हुए हैं तो समझ लो हम सम्यग्दृष्टि हैं। कोई क्या बतलाया कि तुम सम्यग्दृष्टि हो या मिध्यादृष्टि । श्रमत्याख्यानचरणी कपायका संस्कार छह माहसे ज्यादा नहीं चलता। यदि आपकी किसीसे लड़ाई होनेपर छह माह से अधिक कालक लेनेकी भावना रहती है तो समझ लो कि अभी हम मिध्यादृष्टि है। कपायके असंख्यात लोकप्रमाण स्थान है। उनमें मनका स्वरूप ही शिथिल हो जाना प्रशम गुण है । मिथ्यादृष्टि याम जीवकी विषय कपायमें जैसी स्वच्छ प्रवृत्ति होती है मी दर्शन होनेपर नहीं होती। यह दूसरी बात है कि चा उदयसे यह उसे छोड़ नहीं सकता हो पर प्रवृत्तिमं शैथिल्य आ जाता है। प्रशमा एक अर्थ यह भी है जो अधिक ग्राह्य है । वह यह उत्पन्न नहीं होना प्रशम कहलाता है। बहुरूपिया
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