SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्व प्रवचनावली समझा कि दर असल यह रोग तो बड़ा खराव है। वह भी वापिस कर आया। अबकी बार उसने सोचा कि अदालती आदमी बड़े टंच होते हैं, उन्हींको वेचा जाय । निदान, एक आदमीको बेच दिया । वह मजिष्ट्रेट के सामने गया। मजिष्ट्रेटने कहा कि तुम्हारी नालिशका ठीक ठीक मतलब क्या है ? आदमीने कहा-क्यों? मजिस्ट्रेटने मुकदमा खारिज कर कहा कि घरकी रह लो । “यह तो कहानी है पर विचार कर देखा जाय तो हर एक बातमे कुतर्कसे काम नहीं चलता। युक्तिके बलसे सभी बातोका निर्णय नहीं किया जा सकता। कितनी ही बातें ऐसी हैं जिनका आगमसे निर्णय होता है और कितनी ही बातें ऐसी हैं जिनका युक्तिसे निर्णय होता है। यदि आपको धर्ममे श्रद्धा न होती तो हजारोंकी संख्यामे क्यों आते ? __आचार्योंने सबसे पहले यही कहा कि . 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रकी एकता ही मोक्षका मार्ग है। आचार्यकी करुणा बुद्धि तो देखो। अरे, मोक्ष तो तब हो जब पहले बन्ध हो। यहाँ पहले बन्धका मार्ग बतलाना था फिर मोक्षका परन्तु उन्होंने मोक्षमार्गका पहले वर्णन किया है। उसका कारण यही है कि ये प्राणी अनादिकालसे बन्ध जनित दुःखका अनुभव करते करते घबड़ा गये हैं अतः पहले इन्हे मोक्षका मार्ग बतलाना चाहिये। जैसे जो कारागार में पड़ कर दुःखी होता है वह यह नहीं जानना चाहता है कि मैं कारागारमें क्यों पड़ा ? वह तो यह जानना चाहता है कि मैं इस कारागारसे छूटू कैसे ? यही सोच कर आचार्यने पहले मोक्षका मार्ग बतलाया है। सम्यग्दर्शनके रहनेसे विवेक शक्ति सदा जागृत रहती है। वह विपत्तिसे पड़ने पर भी कभी अन्यायको न्याय नहीं समझता। :रामचन्द्रजी सीताको छुडानेके लिये लङ्का
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy