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समय यापन
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हमने सुझाव रक्खा कि समस्त सागर समाजकी एक प्रतिनिधि सभाका निर्माण होना चाहिये । वही सब मन्दिरों तथा संस्थाओंकी व्यवस्था करे | अलग अलग खिचड़ी पकाने से शोभा नहीं । जनता को सुझाव पसन्द आ गया और ८४ प्रतिनिधियोकी एक प्रतिनिधि सभा बन गई । परन्तु देखने में यह आया कि कार्यकर्ताओं के हृदय स्वच्छ नहीं अतः विश्वास नहीं बैठा कि ये लोग आगे चलकर सम्मिलित रूप से व्यवस्था बनाये रखेंगे । सबसे जटिल प्रश्न मन्दिरों सम्बन्धी द्रव्यके सदुपयोग तथा उसकी सुव्यवस्थाका है । परिग्रह एक ऐसा मद्य है कि वह जहाँ जाता है वहीं लोगोके हृदयमे मद उत्पन्न कर देता है । परिग्रह चाहे घरका हो चाहे मन्दिर का, विकार भाव उत्पन्न करता ही है । जब तक मनुष्य परिग्रहको अपने से भिन्न अनुभव करता रहता हैं तब तक इसका बन्धन नहीं होता परन्तु जिस क्षरण वह उसे अपना मानने लगता है उसी क्षण बन्धनमे पड़ जाता है । सरकारी खजानेमे कार्य करनेवाला व्यक्ति अपनी ड्यूटीके अवसर पर खजानेका स्वामी है पर वह उसे अपना नही मानता । यदि कदाचित् सौ पचास रुपयेमे उसका मन ललचा जावे और उन्हे वह निकाल कर जेवमे रखले -उनके साथ ममत्वभाव करने लगे तो तत्काल उसके हाथमें बेड़ी (हथकड़ी) पड़ जाती है ।
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कण्डया वंशमें श्री ताराचन्द्रजीका एक विस्तृत मकान, जो कि इतवारा बाजार था, चिकनेवाला था लोगोंने सुझाव रक्खा कि यह मकान महिलाश्रमके लिये खरीद लिया जाय क्योंकि महिलाश्रम अभी तलाव मन्दिरके पीछे किराये के मकानमे है, जहाँ संकीर्णता बहुत है तथा मच्छरोंकी अधिकता है । मकानकी कीमत २२०००) वाईस हजारके लगभग थी । महिलाश्रमके पास इतना फण्ड नहीं कि जिससे वह स्वयं खरीद सके । मकान निजका होनेसे संस्थामें स्थायित्व आ जाता है अत मंत्री चाहता था कि मकान महिला