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मेरी जीवन गाथा अनुसार पदार्थको समझनेका प्रयास करते हैं। जिस प्रकार सूर्यके अभावमें घर-घर दीपक जल जाते हैं, कोई विजलीका बड़ा बल्ब जलाता है तो कोई मिट्टीका छोटा-सा टिमटिमाता हुआ दीपक ही जलाता है । जिसकी जितनी सामर्थ्य है वह उतना साधन जुटाता है । इसी प्रकार सर्वज्ञ-विशिष्ट ज्ञानीके अभावमे लोग अपने अपने जानके दीपक जलाते हैं। फिर भी एक सूर्य संसारका जितना अधकार नष्ट कर देता है उसको पृथिवीके छोटे वडे सव दीपक भी मिल कर नष्ट नहीं कर सकते। ज्ञान थोड़ा हो, इसमे हानि नहीं परन्तु मोह मिश्रित ज्ञान हो तो वह पक्ष खडाकर देता है । यही कारण है कि इस समय उपलब्ध पृथिवीपर नाना धर्म नाना मत-मतान्तर प्रचलित हैं। यह कलिकालकी महिमा है। इस कालका यही स्वभाव है । आज लोगोंमे इतनी तो समझ आई है कि विभिन्न धर्मवाले एक स्थानपर बैठकर एक दूसरेके धर्मकी वात सुनते हैं, सुनाते हैं। जैनधर्मका अनेकान्तवाद तो इसीलिये अवतीर्ण हुआ है कि वह सव धोका सामञ्जस्य बैठाकर उनके पारस्परिक संघर्षको कमर सके। आयोजक समितिने सब वक्ताओंके लिये एक-एक वी अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया।
समय यापन
पं० फूलचन्द्र जी वनारसवाले आये हुए थे। वैशाख कृपया ३-४ और ५ को आपका शान्त्र प्रवचन हुआ। इन निश्यिाम प्रवचनकी व्यवस्था तालाबके मन्दिरमें थी। मन्दिर पटा? परन्तु व्यवस्थित है । पण्डितजीके प्रवचन मार्मिक हो ।