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पपौरा और प्रहार क्षेत्र
३०९ यह तो चूसा ही नहीं जाता। यद्यपि गन्नाका रस मीठा था परन्तु मेरे रोग था इसलिये वह कटुक लगता था। इसी प्रकार जिनके मिथ्यात्वरूपी रोग है उन्हें मोक्षमार्गका उपदेश देना हितकर नहीं होता । मोक्षमार्गमे तो प्रथम सम्यग्दर्शन है। उसमें परको निज माननेका अभिप्राय मिट जाता है तथा पश्चात् सर्वको त्याग स्वात्मामें लीन होजाता है अतः जिनके यह होगया उनका सर्व कार्य सम्पन्न होगया। आत्माका हित मोक्ष है। मोक्षका उपाय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है अत. सर्व द्वन्द्वको छोड़ इसीमें लगो।
टीकमगढ़से चलकर पौष कृष्ण ६ सं० २००८ को अहार क्षेत्र पहुँच गये । यहाँ एक प्राचीन मन्दिर है । श्रीशान्तिनाथ और कुन्थुनाथ भगवान्की मूर्ति है। अरहनाथ भगवान्की भी मूर्ति रही होगी पर वह उपद्रवियोंके द्वारा नष्ट कर दी गई। उसका स्थान रिक्त है। श्रीशान्तिनाथ भगवान्की मूर्ति बहुत ही सौम्य तथा शान्तिदायिनी है। इसके दर्शन कर श्रवणवेलगोलाके बाहुवली स्वामीका स्मरण हो आता है। यहाँ किसी समय अच्छी बस्ती रही होगी। प्राचीन मूर्तियाँ भी खण्डित दशामें बर्हत उपलब्ध है। संग्रहालय बनवाकर उसमे सवका संग्रह किया गया है। मुख्य मन्दिरके सिवाय एक छोटा मन्दिर और भी है। पास ही मदनसागर नामका विशाल तालाब है। एक पाठशाला भी है। पं० वारेलालजी पठावाले निरन्तर इस क्षेत्र तथा पाठशालाके लिये प्रयत्न करते रहते हैं। यदि साधन अनुकूल हों तो यहाँ शान्तिसे धर्मसाधन किया जा सकता है । ___ पौष कृष्णा ८ सं० २००८ को प्रातःकाल श्रीशान्तिनाथ स्वामी का अभिषेक हुआ। यथाशक्ति चन्दा किया गया। आज कल केवल द्रव्य प्राप्तिके लिये ही धर्म कार्य होते हैं। जिसने द्रव्य दिया उसकी प्रशंसा होने लगी। तीर्थस्थानोंपर आयके अन्य साधन नहीं अतः