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इंटर कालेजका उपक्रम सहायताके वचन दिये । एक दिन रात्रिको कवियोंके कविता-पाठ भी हुए । यहाँ कवि वहुत हैं। अच्छी कविता करते हैं। आश्विन शुक्ला ६ के दिन सागरवालोंके यहाँ आहार हुआ । मैं सागर बहुत समय तक रहा हूं इसलिये यहाँके लोग मेरे साथ
आत्मीयके सहश व्यवहार करते हैं। उत्सवमें आगत विद्वान् यथास्थान चले गये। केवल पं० वंशीधरजी इन्दौर रह गये । आपके २-३ प्रवचन हुए । आप जैन वाङ्मयके उच्च कोटीके ज्ञाता है तथा पदार्थका विवेचन बहुत सूक्ष्म रीतिसे करते हैं । विवेचन करते करते
आप इतने तन्मय हो जाते हैं कि अन्य सुध बुध भूल जाते हैं। उस समय आपकी ध्वनि गद्गद् हो जाती है। तथा नेत्रोंसे अश्रुधारा वहने लगती है। सुनकर जनता भी द्रवीभूत हो जाती है।
दिल्लीसे श्री जैनेन्द्रकिशोरजी सकुटुम्ब आये। आपका न जाने क्यों हमारे साथ इतना आत्मीय भाव हो गया है कि आप यथासमय हमारे पास आते रहते हैं। आश्विन कृष्णा अमावस्याके दिन आपके यहाँ आहार हुआ। अनेक प्रकारकी सामग्री थी। इसमें उनका अपराध नहीं। अपराध हमारी लालसाका है। यदि मैं लालसा पर विजय प्राप्त कर सीधा साधा भोजन ग्रहण करने लगूं तो यह सब प्रपञ्च आज दूर हो जावे। रागादि निवृत्तिके अर्थ जो बात हम अन्यसे कहते हैं, यदि उसका शतांश भी स्वयं पालन करें तो हमारा कल्याण हो जावे । दो तीन दिन रह कर आप चले गये। विजया दशमीके दिन आपका पत्र आया कि श्री क्षुल्लक निजानन्दजी ( कर्मानन्दजी) देहलीके वेदान्त आश्रममें चले गये हैं। इस घटनासे बहुतसे मनुष्योंको खेद हुआ परन्तु इसमे खेदकी बात नहीं। प्रत्येक जीवके अभिप्राय भिन्न-भिन्न होते हैं। आज तक उन्हें जैनधर्मसे प्रेम था। अब उनका विश्वास वेदान्त पर हो गया। मोहकी सत्ता