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, मेरी जीवन गाथा छोड़ा जाय तो किसी भाषासे मनुष्य अपनी उन्नति कर सकता है। मुझे यह जान कर हर्प हुआ कि पं० फूलचन्द्रजी की विशिष्ट प्रेरणा से नगरके लोगोमे इण्टर कालेज खोलनेकी चर्चा धीरे धीरे जोर पकड़ती जाती है। वे इस विषयमें बहुत प्रयत्न कर रहे हैं। उनके प्रयत्नसे श्री सर्राफ मुन्नालाल भगवानदासजीने १०१०१) और श्री निहालचन्द्रजी टडैयाने ७०१०१) देना स्वीकृत किया है। अन्य महानुभावोंने भी रकमें लिखाई। भादों तक १०००००) का चन्दा हो जावेगा और कालेजकी स्थापना हो जावेगी। इसी प्रकरणको लेकर क्षेत्रपाल कमेटीके सदस्योंका यह विचार हुआ कि कमेटीको मकनोंके किरायेसे जो आमदनी होती है उसे मन्दिर सम्बन्धी कार्योंसे वचनेपर कालेजके लिए दे देंगे। ज्ञानप्रचारमे सम्पत्तिका व्यय हो इससे बढ़कर क्या उपयोग हो सकता है ? संगमर्मरके पत्थर जड़वानेकी अपेक्षा मन्दिरोंकी सम्पत्ति का उपयोग शास्त्र प्रकाशन तथा ज्ञान प्रचारमे होने लगे तो यह मनुष्योंकी बुद्धिका परिचायक है। कमेटीके इस विचारसे नवयुवकोंको बहुत हर्प हुआ और वे कालेजके लिये भरसक प्रयत्न करने लगे जिससे बहुत कुछ संभावना हो गई कि यहाँ कालेज खुलकर ही रहेगा।
पयूषण पर्व आगया। पं० फूलचन्द्रजी यहाँ थे ही। अतः सूत्रजीपर उनका सारगर्भित व्याख्यान होता था। उनके व्याख्यान के बाद मैं भी कुछ कह देता था। मेरे कहनेका सार यह था कि यह आत्मा स्वभावतः शुद्ध-निरञ्जन होनेपर भी मोहके द्वारा निड. म्बनाको प्राप्त हो रहा है
अहो निरञ्जन शान्तो बोधोऽह प्रकृतेः परः।
एतावन्तमहं कालं मोहेनैव विम्वितः ॥ कैसे आञ्चर्यकी बात है कि मैं निरचन हूँ, रागादि उपद्रवोंसे रहित हूँ, शान्त हूँ, बोधस्वरूप हूँ, फिर भी इतना काल मैंने मोहक