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ललितपुरकी श्रोर
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करनेसे अनेक मनुष्यों के साथ धर्मचर्चा करनेका अवसर आता है | अनेक देशोंके वन उपवन नदी नाले आदि देखनेका सुअवसर प्राप्त होता है, शरीरके अवयवोंमे संचलन होनेसे क्षुधा आदिकी शक्ति क्षीण नहीं हो पाती, अन्नका परिपाक ठीक होता रहता है, आलस्यादि दुर्गुणों से आत्मा सुरक्षित रहती है, अनेक तीर्थ क्षेत्रादि के दर्शनका अवसर मिलता है, किसी दिन अनुकूल स्थानादि न मिलने से परीषह सहन करनेकी शक्ति आजाती है, कभी दुर्जन मनुष्योंके समागमसे क्रोधादि कषायके कारणोंके सद्भावमें क्षमाका भी परिचय हो जाता है । इत्यादि अनेक लाभोंकी विहार में सम्भावना है । यह स्थान झाँसी के सुन्दरलाल सेठका है । २०००) वार्षिक व्यय है । उपवनमे आम्रादिके वृक्ष हैं। उनसे विशेष आय नहीं । यह रुपया यदि विद्यादान में खर्च किया जाता तो ग्रामीण जनताको बहुत लाभ होता परन्तु लोगोंकी दृष्टि इस ओर नहीं । आज भारतवर्ष अपनी पूर्व गुण- गरिमासे गिर गया है । जहाँ देखो वहाँ पैसेकी पकड़ है । पश्चिमी देशकी सभ्यताको अपनाकर लोगोंने अपने व्यय मार्ग बहुत विस्तृत कर लिये हैं इसीलिए रात-दिन व्ययकी पूर्तिमें ही इन्हे संलग्न रहना पड़ता है । पश्चिमी सभ्यतामे केवल विषय पोषक कार्योंको भारतने अपनाया है । जहाँ प्रथमावस्थामें मद्य मांस मधुका त्याग कराया जाता था वहाँ अब तीनों अमृतरूपमें माने जाने लगे हैं । इनके बिना गृहस्थोंका निर्वाह नहीं होता | थोड़े दिन पहले कोई साबुनका स्पर्श नहीं करता था पर आज उसके बिना किसीका निर्वाह नहीं । अंग्रेजों जो गुण थे उन्हें भारतने नहीं अपनाया । वह समयका दुरुपयोग नहीं करते थे, उन्होंने भारतवर्षकी महिलाओंके साथ सम्बन्ध नहीं किया। प्राचीन वस्तुओंकी रक्षा की, विद्यासे प्रेम बढ़ाया, स्वच्छताको प्रधानता दी इत्यादि । मुसलमानोमें भी बहुतसे गुण हैं । जैसे एक वादशाह
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