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ललितपुरकी पोर
रोगोंको दूर करनेके लिये अस्पतालोंमे भी करोड़ों रुपये व्यय करना पड़ते हैं । राज्य चाहे तो सब कर सकता है क्यों कि उसके पास सत्ताका बल है । अथवा सत्ताका वल ही सर्वोपरि वल नहीं है । आज राजकीय अनेक कानूनोंका प्रतिबन्ध होने पर भी लोग अन्याय करते हैं। उसका करण यही है कि राजकीय कानूनोसे लोगोंका हृदय आतंक युक्त तो होता है पर उस पाप से घृणा नहीं होती । राजके जो अधिकारी वर्ग हैं वे भी स्वयं इन पापोंमे प्रवृत्ति करते हैं। कीमतीसे कीमती मदिरा इन्हीं के उपयोगमे आती है । सिगरेट पीना तो आजकी सभ्यताका नमूना हो गया है । जैसे अधिकारियोंसे लोगोंके हृदय नहीं बदलते बल्कि उस पापके करनेके लिये अनेक प्रकारकी छल क्षुद्रताएं लोग करने लगते हैं। कहीं-कहीं तो यहाँतक देखा गया है कि अध्यापक लोग कक्षाओंमे बैठकर सुकुमारमति बालकोंके समक्ष सिगरेट या बीड़ी का सेवन करते हैं । इसका क्या प्रभाव उन बालकोंपर पड़ता होगा यह वे जाने । अस्तु,
आषाढ़ कृष्णा १२ सं० २००८ को झाँसी पहुँच गये तथा सेठ मक्खनलालजीके यहाँ ठहर गये । मन्दिरमे प्रवचन हुआ । मनुष्यसंख्या पर्याप्त थी । धर्मश्रवणकी इच्छा सबको रहती है - सब मनोयोग पूर्वक सुनते भी हैं परन्तु उपदेश कर्तव्य पथमे नहीं आता । इसका मूल कारण वक्तामे आभ्यन्तर आर्द्रता नहीं है ।
गरजनेवाले मेघ और निरर्थक उपदेश देनेवाले वक्ता सर्वत्र सुलभ हैं। ये वृथा ही सामने आ जाते हैं परन्तु जिनका अन्तरङ्ग आ है तथा जो जगत् का उद्धार करना चाहते हैं ऐसे मेघ तथा उपदेशक नर दुर्लभ हैं। यदि वक्ता चाहता है कि हमारे वचनोंका प्रभाव लोगों पर पड़े तो उस कार्यको उसे स्वयं करना चाहिये । मुनिधर्मी दीक्षा मुनि ही दे सकते हैं तथा जिस पद्धतिसे मुनि
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