SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ललितपुरकी ओर सूर्यकी सायंकालीन सुनहली किरणोंसे अनुरञ्जित हरी भरी झाड़ियोंसे सुशोभित वेत्रवतीका तट बड़ा रम्य मालूम होता था। सन्ध्याकालीन सामायिकके वाद रात्रिको यहीं विश्राम किया, यहाँ पर जो मुन्शी रहता है वह योग्य है दूसरे दिन प्रातः ८ बजे बाद नौका चली ६ के बाद नदीके उस पार पहुँच सके । मल्लाह बड़े परिश्रमसे कार्य करते हैं मिलता भी उन्हें अच्छा है परन्तु मद्यपानमें सव साफ कर देते हैं। कितने ही मल्लाह तो दो दो रुपये तककी मदिरा पी जाते है अतः इनके पास द्रव्यका संचय नहीं हो पाता । यद्यपि राष्ट्रपति तथा प्रधान मन्त्री आदि इनकी उन्नतिमें प्रयत्नशील हैं परन्तु इनका वास्तविक उद्धार कैसे हो इस पर दृष्टि नहीं। जो लोग वर्तमानमें श्रेष्ठ हैं उनसे कहते हैं कि इनके प्रति घृणा न करो परन्तु जब तक इन लोगोंमें मद्य मांसका प्रचार है तब तक न तो लोग इनके साथ समानताका व्यवहार करेंगे और • न इनका उत्कर्ष होगा। देशके नेता केवल पत्रोंमें लेख न लिख कर या बड़े बड़े शहरोंमें भाषण न देकर इन गरीवोंकी टोलियोंमें आकर वैठे तथा इन्हे इनके हितका मार्ग दिखलावें तो ये सहज ही सुश्य पर आ सकते हैं। स्वभावके सरल हैं परन्तु अज्ञानके कारण अपना उत्कर्प नहीं कर सकते। __राज्यकी ओरसे मद्यविक्री रोकी जावे, गांजा चरस आदिका विरोध किया जावे। राज्य सरकार भी.तभी रोक सकती है जब वह इनके कारण होनेवाली आयसे अपनी इच्छा घटा ले । उनसे करोडों रुपयेकी आय सरकारको होती है परन्तु इनके सेवनसे होनेवाले
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy