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मेरी जीवन गाथा शास्त्र मे अधिक रुचि है। श्रापका अभिप्राय श्री कानजी स्वामीके अनुकूल है । विशेप विवेचनकी आवश्यकता नहीं।
यहॉ पर श्री ताराचन्द्र जी रपरिया रहते हैं। आप ऑग्लविद्या के वी. ए. हैं । फिर भी जैन शास्त्रों के मर्मज्ञ हैं। आपकी व्याख्यान शैली अति उत्तम है, चारों अनुयोगों के ज्ञाता हैं, आपका व्यवहार अत्यन्त निर्मल है, फैशनकी गन्ध भी आपको नहीं है, आपके मामा विशिष्ट सम्पन्न हैं फिर भी आप स्वतन्त्र व्यापार कर स्वयं सम्पन्न हुए हैं। धार्मिक पुरुष हैं । विद्वानों से प्रेम रखते हैं। आपको मण्डलीमे प्रायः तत्त्वरुचिवाले ही हैं। प्रतिदिन शास्त्र होता है । श्रोताओं मे श्री वाबूराम जी शास्त्री भी आते हैं। आप बहुत तार्किक हैं-किसी किसी पदार्थ को सहसा नहीं मान लेते। तक भी अनर्गल नहीं करते। यदि यह जीव जैनधर्मके शास्त्रोंका अभ्यास करे तो एक ही हो। परन्तु गृहस्थीके चक्रसे पृथक् हो तव न । इनकी स्त्री सुशीला है। प्रतिदिन दर्शनादि करती है । जब कि इसका जन्म विप्रकुलका है । ताराचन्द्र जी के सम्बन्धसे पं० तुलाराम जी व वकील हजारीलाल जी भी अच्छे धर्मज्ञ हो गये हैं। दो मारवाड़ी भाई तथा ख्यालीराम जी भी इनके शास्त्रमे आते हैं । यहाँ पर एक सभा हुई जिसमे जनताका समारोह अच्छा था । श्वेताम्बर साधु भी अनेक आये थे । साम्यरसके विषयमें व्याख्यान हुआ। विषय रोचक था, अतः सवको रुचिकर हुआ। आत्महित इसीमें है। इससे उच्चतम विषय क्या हो सकता है। यदि इस पर अमल हुआ तो सर्व उपद्रव अनायास ही शान्त हो जावेंगे । परमार्थसे कहनेका नहीं अनुभव गम्य है परन्तु अनुभव तो संसार के विषयोंमे लीन हो रहा है, इसका स्वाद आना ही दुर्लभ है । उपयोग क्रमवर्ती है, अत. एक कालमे एक ही पदार्थ