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श्रुत पञ्चमी
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जहाँ श्री अर्हदनुरागको चन्दननगसंगत अग्निकी तरह दाहोत्पादक कहा है वहाँ अन्य स्नेहकी गिनती ही क्या है ? मेरा निश्चय पाकर ललितपुरके लोग प्रसन्न हो चले गये।
श्रुत पञ्चमी ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमी सं० २००८ को श्रुतपञ्चमीका उत्सव था। पं० मनोहरलालजीने सम्यग्दर्शन की महिमाका दिग्दर्शन कराया। मैंने कहा कि आजका पर्व हमको यह शिक्षा देता है कि यदि कल्याणकी इच्छा है तो ज्ञानार्जन करो । ज्ञानार्जनके बिना मनुष्य जन्मकी सार्थकता नहीं। देव और नारकियोंके यद्यपि ३ ज्ञान होते हैं परन्तु उनके जो ज्ञान होते हैं उन्हें वे विशेष वृद्धिंगत नहीं कर सकते। जैसे देवोंके देशावधि है, वे उसे परमावधि या सर्वावधि रूप नहीं कर सकते। हाँ इतना अवश्य है कि मिथ्यदर्शनके उदयमें जिनका ज्ञान मिथ्याज्ञान कहलाता था सम्यग्दर्शन होने पर उनका वह ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाने लगता है। परन्तु देव पर्यायमें संयमका उदय नहीं इसलिये आपर्याय वही अविरतावस्था रहती है। मनुष्य पर्यायकी ही यह विलक्षण महिमा है कि वह सकलसंयम धारण कर संसार बन्धनको समूल नष्ट कर सकता है। यदि संसारका नाश होगा तो इसी पर्यायमें होगा। इस पर्यायकी महत्ता संयमसे ही है, यह निरन्तर ससार को यह उपदेश देते हैं कि मनुष्य जन्मकी सार्थकता इसीमें है कि फिर संसार वन्धनमें न आना पड़े। इस उपदेशका तात्पर्य केवल