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वरुणासागरमें ग्रीष्मकाल
२५६ हुआ। अनेक मनुष्य इस कार्यमें विघ्नकर्ता भी हैं परन्तु मक्खनलाल जी हृदयके स्वच्छ हैं। आपने जो प्रतीज्ञा की है उसे पूर्ण करेंगे ऐसी मेरी धारणा है । होगा वही जो वीरप्रभुने देखा है।
चैत्र कृष्ण १२ सं० २००७ को सीपरी गये । वहीं प्रवचन हुआ जनता अल्प संख्यामे थी। यहाँपर श्री स्व. मूलचन्द्रजीका एक बड़ा बाड़ा है । जिसमें ५००) मासिक भाड़ा आता है आप बहुत ही विवेकी थे । यहाँ आते ही पिछले दिन स्मरणमें आगये जब हम महीनों उनके सम्पर्कमें रहते थे। अस्तु, अब आपके २ नाती हैं। पुत्र श्रेयांसकुमार बहुत ही भद्र तथा योग्य था परन्तु वह भी कालके. गालमें चला गया । पुत्रकी धर्मपत्नी बहुत कुशल है। उसने यहाँ धर्मसाधनके लिए एक चैत्यालय भी बनवा लिया। प्रतिदिन पूजा स्वय करती है। २ बालक हैं, उन्हे पढ़ाती है-दोनों योग्य हैं। आशा है थोड़े ही कालमे घरकी परिस्थिति संभाल लेगे । संभव है काल पाकर इनकी प्रभुता सर्राफके सदृश हो जावे । ___अगले दिन ७ बजे चलकर ८ बजे सदर बाजार आगये । यहाँपर ३ घण्टा स्वागतमे गया। कन्याओं द्वारा स्वागत गीत गाया गया, एक छात्राने बहुत ही सुन्दर तबला बजाया । उसका कण्ठ भी मधुर था। पश्चात् श्री जिनालयमे जिनदेवके दर्शन कर चित्तमें शान्ति रसका आस्वाद किया। मूर्ति बहुत ही सुन्दर और योग्य संस्थान विशिष्ट थी। तदनन्दर १ घण्टा प्रवचन हुआ। जनताने शान्त चित्तसे श्रवण किया। अपनी अपनी योग्यतासे सवने लाभ उठाया। हम स्वयं जो कहते हैं उसपर अमल नहीं करते फिर सुननेवालोंको क्या कहे १ जिस वृक्षमें छाया नहीं वह इतरको छाया देनेरें असमर्थ है। आजतक वह शान्ति न आई जिसको हमने आगममे पढ़ा है। वास्तविक बात यह है कि आगममें शान्ति नहीं हैं और न अशान्ति ही है। आगम तो प्रतिपादन करनेवाला है। इसी प्रकार