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स्वर्णगिरिकी ओर आदिकी सुन्दर व्यवस्था है किन्तु यह सब होते हुए भी तीर्थक्षेत्रों पर ज्ञानार्जनका कोई साधन नहीं। केवल धनिकवर्ग, अना स्पया बाह्य सामग्रीकी सजावटमे व्यय करता है । इसीमे वह अपना प्रभुत्व मानता है। प्रतिवर्ष मेलामें हजारों व्यक्ति आते हैं पर किसीके भी यह भाव नहीं हुए कि यहाँ पर १ पण्डित स्वाध्याय करनेके लिये रहे, हम इसका भार वहन करेंगे। केवल पत्थर आदि जड़वाकर ऊपरी चमक दमकमें प्राणियोंके मनको मोहित करनेमें रुपयेका उपयोग करते हैं। प्रथम तो इन वाह्य वस्तुओंके द्वारा आत्माका कुछ भी कल्याण नहीं होता। द्वितीय कल्याणका मार्ग जो कपायकी कृशता है सो इन वाह्य वस्तुओंसे उसकी विपरीतता देखी जाती है। कृशता और पुष्टतामे अन्तर है । विषयोंके सम्बन्धसे कषाय पुष्ट होती है और ज्ञानसे विषयोंमे प्रेम नहीं होता सो इन क्षेत्रोंमें ज्ञान साधनका एकरूपसे अभाव है। ___ पञ्चमीके दिन पुनः पर्वतपर जानेका भाव हुआ परन्तु शारीरिक शक्तिकी शिथिलतासे सब मन्दिरोंके दर्शन नहीं कर सका। केवल चन्द्रप्रभ स्वामीके दर्शनकर सुखका अनुभव किया। पश्चात् १ घण्टा वहीं प्रवचन किया। मैंने कहा-मैं तो कुछ जानता नहीं परन्तु श्रद्धा अटल है कि कल्याणका मार्ग केवल आत्मतत्त्वके यथार्थ भेदज्ञानमें है । भेदज्ञानके फलसे ही आत्मा स्वतन्त्र होती है स्वतन्त्रता ही मोक्ष है । पारतन्त्र्य निवृत्ति और स्वातन्त्र्योपलब्धि ही मोक्ष है। मोक्षमार्गका मूल कारण पर पदार्थकी सहायता न चाहता है । कर्मका सम्बन्ध अनादि कालसे चला आया है उसका छूटना परिश्रम साध्य है। परिश्रमका अर्थ मानसिक कायिक वाचनिक व्यापार नहीं किन्तु आत्मतत्त्वमे जो अन्यथा कल्पना है उसको त्यागना ही सच्चा परिश्रम है। त्याग बिना कुछ सिद्धि नहीं अतः सवसे पहले अपना विश्वास करना ही मोक्षमार्गकी सीढ़ी