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________________ ६ मेरी जीवन गाथा पर्याय होता है, अतः जिन्हे मनुष्यताकी रक्षा करना है उन्हें अनेक उपद्रवोंको त्याग केवल मोक्षमार्गकी ओर लक्ष्य देना चाहिये और जो समय गल्पवादमे लाते हैं उसे धर्म कार्योंमे लगानेका प्रयत्न करना चाहिये । यहाँके राजाकी प्रवृत्ति देख हमको दयाका पाठ पढ़ना चाहिये । धौलपुर से ५ मील चलकर विरौदा पर शयन किया । भगत जी ने रात्रिको उपदेश दिया । जनता अच्छी थी । यदि कोई परोपकारी धर्मात्मा हो तो नगरोंकी अपेक्षा ग्रामोंमे अधिक जीवों को मोक्षमार्गका लाभ हो सकता है । परन्तु जब दृष्टि स्वपर उपकार की हो तभी यह काम वन सकता है । अब मेरी शारीरिक शक्ति अतिक्षीण हो गई है । शारीरिक शक्तिकी क्षीणतासे वाचनिक कला भी न्यून हो गई है, अतएव जनताको प्रसन्न करना कठिन है । संसारमे वही मनुष्य जगत्‌का उपकार कर सकता है जो भीतर से निर्मल हो । जैसे जब सूर्य मेघ पटलसे आच्छादित रहता है तब जगत् का उपकार नहीं कर सकता । उसका उपकार यही है कि वह पदार्थों को प्रकाशित करता है और यह मनुष्य उन पदार्थो से अपने योग्य पदार्थोंको चुन उनसे अपनी इच्छाएं पूर्ण करता है । सूर्य के समान ही वक्ताकी आत्मा जब तक कषायके पटलसे आच्छादित रहती है तब तक वह जगत्‌का उपकार नहीं कर सकता। यहांसे चलकर मागरौल तथा एक अन्य ग्राम में ठहरते हुए अगहन सुदीप को राजाखेड़ा पहुँच गये । यहां पर श्री भगत प्यारेलाल जी के द्वारा स्थापित एक जैन विद्यालय है । भगत जी के सत्प्रयत्नसे उस विद्यालयका दो लाखका फण्ड है। श्री पं० नन्हेलाल जी इसके मुख्याध्यापक हैं । आप श्रीयुत महानुभाव पं० वंशीवर जी सिद्वान्तशास्त्रीके •मुख्य शिष्योंमे प्रथमतम शिष्य हैं । यापकी पठन-पाठनशैली अत्यन्त
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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