________________
उदासीनाधम और संस्कृत विद्यालयका उपक्रम १८१ यहाँ पनि भोजन होता है तब अच्छा-अच्छा माल तो तुम उदरमें स्वाहा कर लेते हो और उच्छिष्ट पानीसे सिंचित पत्तलें उनके हवाले करते हो बलिहारी इस दया की। अच्छे-अच्छे फल तो आप खा गये और काने-काने वचे सो इन विचारोंको सौप दिये फिर इसपर वनते हो हम आप पद्धतिकी रक्षा करनेवाले हैं। ____ गृद्ध पक्षी मुनिके चरणोंमे लोट गया, उसके पूर्व भव मुनिने वर्णन किये, सीता तथा रामचन्द्रजीको मुनि महाराजने उसकी रक्षाका भार सुपुर्द किया । अव देखिये, जहाँ गृद्ध पक्षी व्रती हो जावे वहाँ गृह शुद्ध नहीं हो सकते यह बुद्धिमे नहीं आता। यदि शूद्र इन कार्योंको त्याग देवे और मद्यादि पान छोड़ देवे तो वह व्रती हो सकता है। मन्दिर आने दो मत आने दो आपकी इच्छा। जिस प्रकार आप उनका बहिष्कार करते हैं यदि वे भी कल्पना करो सर्व सम्मति कर आपके साथ कोई व्यवहार न करें तो आप क्या करेंगे ' धोवी यदि वस्त्र प्रक्षालन छोड़ दें, चर्मकार मृत पशु न हटावे, वसौरिन सौरीका काम न करे और भगिन शौचगृह शुद्ध न करे तो संसार में हाहाकार मच जावे । हाहाकारकी तो कोई बात नहीं हैजा प्लेग चेचक और क्षय जैसे अनेक भयंकर रोगोंका
आश्रय हो जावेगा अतः वुद्धिसे काम लो, उनके साथ मानवताका व्यवहार करो, जिससे यह भी सुमागेपर आवें। यह देखा जाता है कि यदि वह अध्ययन करें तो आपके बालकोंके सदृश बी ए. एम. ए वैरिष्टर हो सकते हैं। संस्कृत पढ़े तो आचार्य हो सकते हैं। फिर जैसे आप पश्च पाप त्याग कर व्रती बनते हो यदि वह भी पञ्च पाप त्यागें तो इसका कौन विरोध कर सकता है ? ___ मैं मुरारमें था एक भंगी प्रति दिन शास्त्रश्रवण करता था सुनकर कुछ भयभीत भी होता था। वह हमेशा उत्सुक रहता था