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उदासीनानम और संस्कृत विद्यालयका उपक्रम १७७ प्राप्ति पुष्कल नहीं होती इसलिए धनिकवर्ग अपने बालकोंको इसका अध्ययन नहीं कराते परन्तु इतना निश्चित है कि इस भाषासे हृदयमे जो शुद्धि या निर्मलता आती है वह अन्य भाषाओंसे नहीं। ३ छात्रों द्वारा अभ्यन्तरकी प्रेरणासे संस्कृत भाषाके अध्ययनकी बात सुन हृदयमें प्रसन्नता हुई। यहाँ पसारी टोलाके मन्दिरमें प्राचीन साहित्य भण्डार है ग्रन्थोको दीमक और चूहोंने बहुत नुकसान पहुंचाया है लोग शास्त्र भण्डारोंका महत्त्व नहीं समझते इसलिये उनकी रक्षाकी ओर विशेप प्रयत्न शील नहीं रहते। अपने हुन्डी दस्तावेज आदिको लोग जिस प्रकार सुरक्षित रखते हैं उसी प्रकार शास्त्र भी सुरक्षित रखनेके योग्य हैं।
श्री ज्ञानचन्द्रजीकी धर्मपत्नीने जो ७५०००) का दान निकाला था उसके ट्रष्ट होनेमे कुछ लोग बाधा उपस्थित कर रहे थे तथा कितने ही लोगोंकी यह भावना थी कि यह रुपये अंग्रेजी स्कूलमे लगाये जावें। मुझे इससे हर्ष विपाद नहीं था परन्तु भावना यह थी कि अंग्रेजी अध्ययनके लिए तो नगरमें छात्रोंको अन्य साधन सुलभ हैं अतः उसीसे द्रव्य लगानेसे वास्तविक लाभ नहीं। संस्कृत अध्ययनके और खास कर जैनधर्म सहित संस्कृत अध्ययनके साधन नहीं इसलिये उसके अर्थ द्रव्य व्यय करना उत्तम है। अस्तु मुझे इस विकल्पमे नहीं पड़ना ही श्रेयस्कर है यह विचार कर मैं तटस्थ रह गया।
चैत्र कृष्ण ६ सं० २००६ को शामके समय यहाँसे २ मील चल कर श्री सोहनलालजीके बागमे ठहर गये। प्रातःकाल सामायिक कर चलनेके लिये तैयार हुए। इतनेमे इटावासे बहुतसे सज्जन आ गये । सवने बहुत आग्रह किया कि आप इटावा ही रहिये क्योकि गर्मी पड़ने लगी है अतः मागमे आपको कष्ट होगा। मैंने कहामुझे कोई आपत्ति नहीं श्री चम्पालालजी सेठीसे पूछिये । अन्तमे उन
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